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१५२ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, ५, १६९ एक जीवकी अपेक्षा उक्त सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ॥१६९ ।।
चदुण्हमुवसमा चदुण्डं खवगा केवचिरं कालादो होति ? णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥१७० ॥
पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगी चारों उपशामक और क्षपक कितने काल होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय होते हैं ।। १७० ॥
यह एक समय प्रमाण जघन्य काल चारों उपशामकोंके व्याघातके विना योगपरिवर्तन, गुणस्थानपरिवर्तन और मरणकी अपेक्षा तथा चारों झपकोंके मरण व व्याघातके विना योगपरिवर्तन और गुणस्थानपरिवर्तनकी अपेक्षा जानना चाहिये ।
उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ १७१ ।। नाना जीवोंकी अपेक्षा उक्त जीवोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ १७१ ॥ एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥१७२ ।। एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका जघन्य काल एक समय है ॥ १७२ ॥ उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ १७३ ॥ एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ १७३ ॥ कायजोगीसु मिच्छादिट्ठी केवचिरं कालादो होंति? णाणाजीवं पडुच्च सबढ़ा।'
काययोगियोंमें मिथ्यादृष्टि जीव कितने काल होते हैं : नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल होते हैं ॥ १७४ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णण एगसमयं ॥ १७५ ।। एक जीवकी अपेक्षा काययोगी मिथ्यादृष्टि जीवोंका जघन्य काल एक समय है ॥१७५॥ उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियढें ॥ १७६ ॥
एक जीवकी अपेक्षा काययोगी मिथ्यादृष्टि जीवोंका उत्कृष्ट काल अनन्त कालरवरूप असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन है ॥ १७६ ॥
सासणसम्मादिद्विप्पहु डि जाव सजोगिकेवलि त्ति मणजोशिभगो ।। १७७॥
सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर सयोगिकेवली गुणस्थान तक कामगियोंकामा मनोयोगियोंके समान है ॥ १७७ ॥
ओरालियकायजोगीसु मिच्छादिट्ठी केवचिरं कालादो होंति ? जी सच सव्वद्धा ॥ १७८ ॥
औदारिककाययोगियोंमें मिथ्यादृष्टि जीव कितने काल होते हैं ? नाना जीवोंका अशा सर्व काल होते हैं ॥ १७८ ।।
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