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१४८] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, ५, १४२ बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर जीव कितने काल होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल होते हैं ॥ १४२ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं ॥ १४३ ॥ एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका जघन्य काल क्षुद्रभवग्रहण प्रमाण है ॥ १४३ ॥ उक्कस्सेण कम्महिदी ॥ १४४ ॥ उक्त जीवोंका उत्कृष्ट काल कर्मस्थिति प्रमाण है ॥ १४४ ॥
यहांपर कर्मस्थितिसे दर्शनमोहकी सत्तर कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण उत्कृष्ट स्थितिको ग्रहण करना चाहिये।
वादरपुढविकाइय-बादरआउकाइय-चादरतेउकाइय-बादरवाउकाइय-बादरवणप्फदिकाइयपत्तेयसरीरपज्जत्ता केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सम्बद्धा ।। १४५ ।।
बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त, बादर जलकायिक पर्याप्त, बादर अग्निकायिक पर्याप्त, बादर वायुकायिक पर्याप्त और बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त जीव कितने काल होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल होते हैं ॥ १४५ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ।। १४६ ॥ एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ १४६ ॥ उक्कस्सेण संखेज्जाणि वाससहस्साणि ॥ १४७ ॥ उक्त जीवोंका उत्कृष्ट काल संख्यात हजार वर्ष है ॥ १४७ ॥
उनमें शुद्ध पृथिवीकायिक पर्याप्तक जीवोंकी उत्कृष्ट आयुस्थितिका प्रमाण बारह हजार ( १२००० ) वर्ष, खर पृथिवीकायिक जीवोंकी स्थितिका प्रमाण बाईस हजार ( २२०००) वर्ष, जलकायिक पर्याप्तक जीवोंकी स्थितिका प्रमाण सात हजार ( ७०००) वर्ष, अग्निकायिक पर्याप्तक जीवोंकी स्थितिका प्रमाण तीन ( ३ ) दिवस, वायुकायिक पर्याप्तक जीवोंकी स्थितिका प्रमाण तीन हजार ( ३०००) वर्ष और वनस्पतिकायिक पर्याप्तक जीवोंकी स्थितिका प्रमाण दस हजार ( १००००) वर्ष है। इन आयुस्थितियोंमें लगातार संख्यात हजार बार उत्पन्न होनेपर संख्यात हजार वर्ष हो जाते हैं। जैसे- एक अविवक्षित कायवाला जीव विवक्षित कायवाले जीवोंमें उत्पन्न हुआ, तत्पश्चात् वह उसी कायवाले जीवोंमें संख्यात हजार वर्ष तक परिभ्रमण करता हुआ अविवक्षित कायको प्राप्त हो गया । इस प्रकार विवक्षित कायवाले जीवका उत्कृष्ट काल समझना चाहिये ।
बादरपुढविकाइय-बादरआउकाइय-बादरतेउकाइय-बादरवाउकाइय-बादरवणफदिकाइयपत्तेयसरीरअपजत्ता केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा ॥१४८
बादर पृथिवीकायिक लब्ध्यपर्याप्तक, बादर जलकायिक लब्ध्यपर्याप्तक, बादर तेजकायिक लब्ध्यपर्याप्तक, बादर वायुकायिक लब्ध्यपर्याप्तक और बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर लब्ध्यपर्याप्तक
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