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१, ५, ८३ ]
कालाणुगमे गदिमग्गणा उक्त तीन प्रकारके सम्यग्मिथ्यादृष्टि मनुष्योंका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ ७७ ॥
उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ ७८ ॥
उक्त तीन प्रकारके सम्यग्मिथ्यादृष्टि मनुष्योंका एक जीवकी अपेक्षा उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ ७८ ॥
असंजदसम्मादिट्ठी केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा ॥७९॥
उक्त तीन प्रकारके असंयतसम्यग्दृष्टि मनुष्य कितने काल होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल होते हैं ॥ ७९ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ ८० ॥
एक जीवकी अपेक्षा उक्त तीन प्रकारके असंयतसम्यग्दृष्टि मनुष्योंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ ८० ॥
उक्कस्सेण तिण्णि पलिदोवमाणि, तिण्णि पलिदोवमाणि सादिरेयाणि, तिण्णि पलिदोवमाणि देसूणाणि ॥ ८१ ।।
__एक जीवकी अपेक्षा उक्त तीन प्रकारके असंयतसम्यग्दृष्टि मनुष्योंका उत्कृष्ट काल यथाक्रमसे तीन पल्योपम, साधिक तीन पल्योपम और कुछ कम तीन पल्योपम है ॥ ८१ ॥
संजदासंजदप्पहुडि जाव अजोगिकेवलि ति ओघं ॥ ८२ ॥
संयतासंयत गुणस्थानसे लेकर अयोगिकेवली तक उक्त तीनों मनुष्योंका जघन्य और उत्कृष्ट काल ओघके समान है ॥ ८२ ।।
ओघसे यहां इतनी विशेषता समझना चाहिये कि उक्त तीन प्रकारके मनुष्य संयतासंयतोंका उत्कृष्ट काल योनिनिष्क्रमणरूप जन्मसे लेकर आठ वर्षांसे कम एक पूर्वकोटि प्रमाण है। इसका कारण यह है कि जिस प्रकार तिर्यंच जीव उत्पन्न होनेके पश्चात् अन्तर्मुहूर्तमें अणुव्रतोंको ग्रहण कर सकते हैं उस प्रकार उक्त तीन प्रकारके मनुष्योंमें कोई भी मनुष्य अन्तर्मुहूर्तमें अणुव्रतोंको ग्रहण नहीं कर सकता है, किन्तु वह योनिनिष्क्रमणरूप जन्मसे आठ वर्षका हो जानेपर ही अणुव्रतोंको ग्रहण कर सकता है।
मणुसअपज्जत्ता केवचिरं कालादो होति ? णाणाजीवं पडुच्च जहण्णण खुद्दाभवग्गहणं ॥ ८३॥
लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्य कितने काल होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे क्षुद्र भवग्रहण प्रमाण होते हैं ।। ८३ ॥
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