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१४४] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, ५, १०३ होते हैं ॥ १०२ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एक्कतीसं बत्तीसं सागरोवमाणि सादिरेयाणि ॥१०३॥
__ नौ अनुदिश विमानोंमें एक जीवकी अपेक्षा उक्त देवोंका जघन्य काल साधिक इकतीस सागरोपम और चार अनुत्तर विमानोंमें साधिक बत्तीस सागरोपम है ॥ १०३ ॥
इन विमानोंमें गुणस्थानपरिवर्तन नहीं है, क्योंकि, वहां एक असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानके सिवाय अन्य किसी भी गुणस्थानकी सम्भावना नहीं है। यहांपर साधिकताका प्रमाण एक समय मात्र समझना चाहिये, क्योंकि, अधस्तन विमानवासी देवोंकी एक समय अधिक उत्कृष्ट स्थिति ही ऊपरके विमानवासी देवोंकी जघन्य स्थिति होती है, ऐसा आचार्यपरंपरागत उपदेश है।
उक्कस्सेण बत्तीस तेत्तीस सागरोवमाणि || १०४ ॥
उक्त विमानोंमें उनका उत्कृष्ट काल यथाक्रमसे बत्तीस सागरोपम और तेत्तीस सागरोपम है ॥ १०४ ॥
अधस्तन नौ अनुदिश विमानोंमें पूरे बत्तीस सागरोपम प्रमाण तथा चारों अनुत्तर विमानोंमें पूरे तेत्तीस सागरोपम प्रमाण उत्कृष्ट काल है।
सव्वट्ठसिद्धिविमाणवासियदेवेसु असंजदसम्मादिट्ठी केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सम्बद्धा ।। १०५॥
___ सर्वार्थसिद्धि विमानवासी देवोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि देव कितने काल होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल होते हैं ।। १०५ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णुक्कस्सेण तेत्तीसं सागरोवमाणि ॥ १०६ ॥ सर्वार्थसिद्धिमें एक जीवकी अपेक्षा जघन्य व उत्कृष्ट काल तेत्तीस सागरोपम है ॥१०६॥ इंदियाणुवादेण एइंदिया केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सम्बद्धा ।।
इन्द्रियमार्गणाके अनुवादसे एकेन्द्रिय जीव कितने काल होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल होते हैं ॥ १०७ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं ॥ १०८ ॥ एक जीवकी अपेक्षा एकेन्द्रिय जीवोंका जघन्य काल क्षुद्रभवग्रहण प्रमाण है ॥ १०८ ।। उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेजपोग्गलपरियट्ट ।। १०९ ।।
एक जीवकी अपेक्षा एकेन्द्रिय जीवोंका उत्कृष्ट काल असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनखरूप अनन्त काल है ॥ १०९ ।।
बादरएइंदिया केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा ॥ ११० ।।
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