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१, ५, १०२] कालाणुगमे गदिन.....
[ १४३ एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ ९५ ॥
एक जीवकी अपेक्षा उक्त मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि देवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ ९५ ॥
उक्कस्सेण सागरोवमं पलिदोवमं सादिरेयं वे सत्त दस चोद्दस सोलस अट्ठारस सागरोवमाणि सादिरेयाणि ॥ ९६ ॥
उक्त मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि देवोंका उत्कृष्ट काल यथाक्रमसे साधिक एक सागरोपम, साधिक एक पल्योपम, साधिक दो सागरोपम, साधिक सात सागरोपम, साधिक दस सागरोपम, साधिक चौदह सागरोपम, साधिक सोलह सागरोपम और साधिक अठारह सागरोपम है ॥
सासणसम्मादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी ओघं ॥९७॥
भवनवासियोंसे लेकर सहस्रार कल्प तकके सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि देवोंका काल ओघके समान है ॥ ९७ ॥
आणद जाव णवगेवज्जविमाणवासियदेवेसु मिच्छादिट्ठी असंजदसम्मादिट्ठी केवचिरं कालादो होति ? णाणाजीवं पडुच्च सम्बद्धा ।। ९८ ॥
आनत-प्राणत कल्पसे लेकर नव ग्रैवेयक तक विमानवासी देवोंमें मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि देव कितने काल होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल होते हैं ॥ ९८ ॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहत्तं ॥ ९९ ।।
एक जीवकी अपेक्षा उपर्युक्त मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि देवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ ९९॥
___ उक्कस्सेण वीसं. बावीसं तेवीसं चउवीसं पणवीसं छब्बीसं सत्तावीसं अट्ठावीसं एगूणतीसं तीसं एक्कतीसं सागरोवमाणि ॥ १०० ।।
उक्त विमानवासी देवोंका उत्कृष्ट काल यथाक्रमसे बीस, बाईस, तेईस, चौबीस, पञ्चीस, छब्बीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस और इकतीस सागरोपम है ॥ १०० ॥
सासणसम्मादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी ओघं ॥ १०१ ।।
उक्त ग्यारह स्थानोंमें सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि देवोंका काल ओघके समान है ॥ १०१॥
अणुद्दिस-अणुत्तरविजय-वइजयंत-जयंत-अवराजिदविमाणवासियदेवेसु असंजदसम्मादिट्ठी केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सम्बद्धा ।। १०२॥
अनुदिशविमानवासी देवोंमें तथा विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित इन अनुत्तर विमानवासी देवोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि देव कितने काल होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल
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