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१, ५, ६८] कालाणुगमे गदिमग्गणा
[१३९ एक जीवकी अपेक्षा उक्त तीनों प्रकारके तिर्यंच मिथ्यादृष्टि जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है ।। ५८ ॥
उक्कस्सं तिण्णि पलिदोवमाणि पुब्धकोडिपुधत्तेण अब्भहियाणि ॥ ५९ ॥ उक्त तिर्यंचोंका उत्कृष्ट काल पूर्वकोटि पृथक्त्वसे अधिक तीन पल्योपम है ॥ ५९॥ सासणसम्मादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी ओधं ॥ ६० ॥
उक्त तीनों प्रकारके तिर्यंच सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका काल ओघके समान है ॥ ६० ॥
असंजदसम्मादिट्ठी केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा ॥६१॥
उक्त तीनों प्रकारके तिर्यंच असंयतसम्यग्दृष्टि जीव कितने काल होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल होते हैं ॥६१॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहत्तं ॥ ६२ ॥
एक जीवकी अपेक्षा उक्त तीनों प्रकारके पंचेन्द्रिय तिर्यंच असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ ६२ ।।
उक्कस्सेण तिणि पलिदोवमाणि, तिण्णि पलिदोवमाणि, तिण्णि पलिदोवमाणि देसूणाणि ।। ६३ ।।
___ उक्त तीनों पंचेन्द्रिय तिर्यंच असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका एक जीवकी अपेक्षा उत्कृष्ट काल यथाक्रमसे तीन पल्योपम, तीन पल्योपम और कुछ कम तीन पल्योपम है ॥ ६३ ॥
संजदासजदा ओघं ॥ ६४ ॥ उक्त तीनों प्रकारके पंचेन्द्रिय संयतासंयत तिर्यंचोंका काल ओघके समान है ॥ ६४ ॥ पंचिंदियतिरिक्खअपज्जता केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजी पडुच्च सव्वद्धा ॥
पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक तिर्यंच कितने काल होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल होते हैं ॥ ६५॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुदाभवग्गहणं ॥६६॥
एक जीवकी अपेक्षा पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक तिर्यंचोंका काल जघन्यसे क्षुद्रभवग्रहण प्रमाण है ॥ ६६ ॥
उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ।। ६७॥ एक जीवकी अपेक्षा पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक तिर्यंचोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ॥६७॥ मणुसगदीए मणुस-मणुसपज्जत्त-मणुसिणीसु मिच्छादिट्ठी केवचिरं कालादो
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