________________
१२० ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, ४, १२९ लेकर क्षीणकषाय-वीतराग-छमस्थ गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवी जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ १२८ ॥
मणपजवणाणीसु पमत्तसंजदप्पहुडि जाव खीणकसाय-वीदराग-छदुमत्था ति ओघं ॥ १२९ ।। ..
मनःपर्ययज्ञानियोंमें प्रमत्तसंयत गुणस्थानसे लेकर क्षीणकषाय-वीतराग-छद्मस्थ गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवी जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ १२९ ॥
केवलणाणीसु सजोगिकेवली ओघं ॥ १३० ।। केवलज्ञानियोंमें सयोगिकेवली जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ १३० ॥ अजोगिकेवली ओघं ॥ १३१ ।। केवलज्ञानियोंमें अयोगिकेवली जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ १३१ ॥ संजमाणुवादेण संजदेसु पमत्तसंजदप्पहुडि जाव अजोगिकेवलि त्ति ओघं ॥१३२
संयममार्गणाके अनुवादसे संयतोंमें प्रमत्तसंयत गुणस्थानसे लेकर अयोगिकेवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवी जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ १३२ ॥
सजोगिकेवली ओघं ॥ १३३ ॥ संयतोंमें सयोगिकेवलियोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ १३३ ॥ सामाइयच्छेदोवट्ठावणसुद्धिसंजदेसु पमत्तसंजदप्पहुडि जाव अणियट्टि त्ति ओघं ॥
सामायिक और छेदोपस्थापना-शुद्धि-संयतोंमें प्रमत्तसंयत गुणस्थानसे लेकर अनिवृत्तिकरण गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवी जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ १३४ ॥
परिहारसुद्धिसंजदेसु पमत्त-अपमत्तसंजदेहि केवडियं खेतं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १३५ ।।
परिहारविशुद्धिसंयतोंमें प्रमत्त और अप्रमत्तसंयत जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ १३५ ॥
सुहुमसांपराइय-सुद्धिसंजदेसु सुहुमसांपराइय-उवसमा खवा ओघं ।। १३६ ।।
सूक्ष्मसांपरायिक-शुद्धिसंयतोमें सूक्ष्मसांपरायिक उपशमक और क्षपक नीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ १३६ ॥
जहाक्खादविहार-सुद्धिसंजदेसु चदुट्ठाणी ओघं ॥ १३७ ॥
यथाख्यात-विहार-शुद्धिसंयतोमें अन्तिम चार गुणस्थानवी जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओके. समान है ॥ १३७ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org .