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१,५, ३२] कालाणुगमे ओघणिद्देसो
[१३५ एक अप्रमत्तसंयत जीव अपूर्वकरण गुणस्थानवर्ती क्षपक हुआ और वहां अन्तर्मुहूर्त रह करके अनिवृत्तिकरण क्षपक हो गया। इस प्रकार अपूर्वकरण क्षपकका एक जीवकी अपेक्षा प्रकृत जघन्य काल प्राप्त हो जाता है। इसी प्रकारसे शेष तीन क्षपकों और अयोगिकेवलीके भी जघन्य कालकी प्ररूपणां करनी चाहिये ।
उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ २९ ॥ एक जीवकी अपेक्षा चारों क्षपकों और अयोगिकेवलियोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ।।
एक अप्रमत्तसंयत जीव अपूर्वकरण क्षपक हुआ। वहांपर वह सर्वोत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त काल तक रह करके अनिवृत्तिकरण गुणस्थानको प्राप्त हुआ । यह एक जीवका आश्रय करके अपूर्वकरण क्षपकका उत्कृष्ट काल हुआ। इसी प्रकारसे शेष तीन क्षपकों और अयोगिकेवलियोंका काल जानना चाहिये । यहांपर जघन्य और उत्कृष्ट ये दोनों ही काल समान हैं, क्योंकि, प्रकृत अपूर्वकरण आदिके परिणामोंकी अनुकृष्टि सम्भव नहीं है ।
सजोगिकेवली केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा ॥ ३० ॥ सयोगिकेवली जिन कितने काल होते हैं ! नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल होते हैं ॥३०॥
कारण यह कि तीनों कालोंमें ऐसा एक भी समय नहीं है जब कि सयोगिकेवली जिन न पाये जावें। इसीलिये उनका यहां सर्व काल कहा गया है ।
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ ३१ ॥ एक जीवकी अपेक्षा सयोगिकेवलियोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ ३१ ॥
कोई एक क्षीणकषाय गुणस्थानवी जीव सयोगिकेवली होकर वहां अन्तर्मुहूर्त काल रहा और तत्पश्चात् समुद्धात करके योगनिरोधपूर्वक अयोगिकेवली हो गया। इस प्रकारसे सयोगिकेवली जिनका एक जीवकी अपेक्षा सूत्रोक्त जघन्य काल उपलब्ध हो जाता है।
उक्कस्सेण पुव्वकोडी देसूणा ।। ३२ ॥ एक जीवकी अपेक्षा सयोगिकेवलियोंका उत्कृष्ट काल कुछ कम पूर्वकोटि वर्ष प्रमाण है ॥
कोई एक क्षायिकसम्यग्दृष्टि देव अथवा नारकी जीव पूर्वकोटिकी आयुवाले मनुष्योंमें उत्पन्न हुआ। वह सात मास गर्भमें रह करके गर्भमें प्रवेश करनेरूप जन्मदिनसे आठ वर्षका हो अप्रमत्तभावसे संयमको प्राप्त हुआ (१)। पश्चात् प्रमत्त और अप्रमत्त संयत गुणस्थान संबन्धी सहस्रों परिवर्तनोंको करके (२) अप्रमत्तसंयत गुणस्थानमें अधःप्रवृत्तकरणको करके (३) क्रमशः अपूर्वकरण (४), अनिवृत्तिकरण (५), सूक्ष्मसाम्पराय क्षपक (६) और क्षीणकषाय-वीतराग-छद्मस्थ होकर (७) सयोगिकेवली हुआ और फिर इस सयोगिकेवली अवस्थामें आठ वर्ष सात अन्तर्मुहूतोंसे कम एक पूर्वकोटि काल पर्यन्त विहार करनेके पश्चात् अयोगिकेवली हो गया (८)। इस प्रकार आठ वर्ष और
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