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१.३४ ]
छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, ५, २५
उत्तम जातिका देव हो गया । इस प्रकारसे उसका एक समय मात्र जघन्य काल प्राप्त हो जाता है । इसी प्रकार शेष तीनों उपशामकोंके भी एक समयकी प्ररूपणा करना चाहिए । विशेषता यह है कि अनिवृत्तिकरण और सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थानवर्ती उपशामकोंके चढ़ने और उतरने इन दोनों ही प्रकारोंसे तथा उपशान्तकषाय उपशामकके एक ही प्रकार ( उतरते हुए ) से एक समयकी प्ररूपणा करनी चाहिये |
उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ २५ ॥
एक जीवकी अपेक्षा चारों उपशामकोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ २५ ॥
यथा- एक अप्रमत्तसंयत जीव अपूर्वकरण गुणस्थानवर्ती उपशामक हुआ। वहां पर ह सर्वोत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त काल रहकर अनिवृत्तिकरण गुणस्थानको प्राप्त हुआ । इस प्रकार यह एक जीवकी अपेक्षा अपूर्वकरणका वह उत्कृष्ट काल प्राप्त हो जाता है । इसी प्रकारसे अन्य तीनों उपशामकोंके उत्कृष्ट कालकी प्ररूपणा करनी चाहिये ।
चदुहं खवगा अजोगिकेवली केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च जहणेण अंतमुत्तं ॥ २६ ॥
अपूर्वकरण आदि चारों क्षपक और अयोगिकेवली कितने काल होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त काल तक होते हैं ॥ २६ ॥
सात आठ जन अथवा अधिकसे अधिक एक सौ आठ अप्रमत्तसंयत जीव अप्रमत्तकालके बीत जानेपर अपूर्वकरण गुणस्थानवर्ती क्षपक हुए और वहांपर अन्तर्मुहूर्त रहकर अनिवृत्तिकरण क्षपक हो गये । इस प्रकार नाना जीवोंकी अपेक्षा अपूर्वकरण क्षपकोंका वह अन्तर्मुहूर्त प्रमाण जघन्य काल प्राप्त हो जाता है । इसी प्रकार अनिवृत्तिकरण सूक्ष्मसाम्पराय और क्षीणकषाय क्षपक तथा अयोगि1 केवलियोंका भी जघन्य काल जानना चाहिये ।
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उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ २७ ॥
नाना जीवोंकी अपेक्षा चारों क्षपकों और अयोगिकेवलियोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है |
सात आठ अथवा बहुतसे अप्रमत्तसंयत जीव अपूर्वकरण गुणस्थानवर्ती क्षपक हुए और वहां पर अन्तर्मुहूर्त रह करके अनिवृत्तिकरण गुणस्थानवर्ती हो गये। उसी समय अन्य अप्रमत्त संयत जीव अपूर्वकरण क्षपक हुए । इस प्रकार पुनः पुनः संख्यात बार आरोहण क्रियाके चालू रहनेपर नाना जीवोंका आश्रय करके अपूर्वकरण क्षपकोंका वह उत्कृष्ट काल प्राप्त हो जाता है। इसी प्रकार से शेष तीन क्षपकों और अयोगिकेवलियोंके भी प्रकृत कालकी प्ररूपणा करनी चाहिये ।
एगजीवं पच्च जहणेण अंतोमुहुत्तं ।। २८ ।।
एक जीवकी अपेक्षा चारों क्षपकों और अयोगिकेवलियोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है ॥
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