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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, ५, ३३
आठ अन्तर्मुहूतों से कम पूर्वकोटि वर्ष प्रमाण सयोगिकेवलीका उत्कृष्ट काल उपलब्ध हो जाता है । आदेसेण गदियाणुवादेण णिरयगदीए णेरइएसु मिच्छादिट्ठी केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा ।। ३३ ॥
आदेशकी अपेक्षा गतिमार्गणाके अनुवाद से नरकगतिमें नारकियोंमें मिथ्यादृष्टि जीव कितने काल होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल होते हैं ॥ ३३ ॥
एगजीवं पच्च जहणेण अंतोमुहुतं ॥ ३४ ॥
एक जीवकी अपेक्षा नारकी मिथ्यादृष्टिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ ३४ ॥
वह इस प्रकारसे - जो पूर्वमें भी बहुत बार मिध्यात्वको प्राप्त हो चुका है ऐसा एक सम्यग्मिथ्यादृष्टि अथवा असंयतसम्यग्दृष्टि जीव संक्लेशको पूर्ण करके मिथ्यादृष्टि हो गया । वहांपर वह सर्वजघन्य अन्तर्मुहूर्त काल रहकर और विशुद्ध होकर सम्यक्त्वको अथवा सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त हो गया। इस प्रकार नारकी मिथ्यादृष्टिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त प्रमाण उपलब्ध होता है ।
उक्कस्सेण तेत्तीस सागरोवमाणि ।। ३५ ।
एक जीवकी अपेक्षा नारकी मिथ्यादृष्टि उत्कृष्ट काल तेतीस सागरोपम है ॥ ३५ ॥
एक तिर्यंच अथवा मनुष्य सातवीं पृथिवीमें उत्पन्न हुआ । वहांपर वह मिथ्यात्वके साथ तेतीस सागरोपम काल रहकर गत्यन्तरको प्राप्त हुआ । इस प्रकार नारकी मिथ्यादृष्टिका उत्कृष्ट का तीस सागरोपम उपलब्ध होता है ।
सासणसम्मादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी ओघं ॥ ३६ ॥
सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिध्यादृष्टिं नारकी जीवोंका नाना व एक जीवकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट काल ओघके समान है ॥ ३६ ॥
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अमजद सम्मादिट्ठी केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पहुच सव्वद्धा ॥ ३७ ॥ नारकी असंयतसम्यग्दृष्टि कितने काल होते हैं ? नाना जीयोंकी अपेक्षा सर्व काल
होते हैं ॥ ३७ ॥
एगजीवं पहुच जहणेण अंतोमुहुत्तं ॥ ३८ ॥
एक जीवकी अपेक्षा नारकी असंयतसम्यग्दृष्टिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ ३८ ॥ उक्कस्सेण तेत्तीस सागरोवमाणि देसूणाणि ॥ ३९ ॥
नारकी असंयतसम्यग्दृष्टिका उत्कृष्ट काल कुछ कम तेतीस सागरोपम है ॥ ३९ ॥ पढमाए जाव सत्तमाए पुढवीए णेरइएसु मिच्छादिट्ठी केवचिरं कालाद होति ? प्राणाजीव पडुच्च सव्वद्धा ॥ ४० ॥
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