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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
पत्तसंजद पहुडि जाव सजोगिकेवलि त्ति ओघं ॥ १६४ ॥ प्रमत्तसंयत गुणस्थान से लेकर सयोगिकेवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती शुक्ललेश्यावाले जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ १६४ ॥
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भवियाणुवादेण भवसिद्धिएसु मिच्छादिट्ठिप्पहुडि जाव अजोगिकेवलि त्ति ओघं ॥ भव्यमार्गणाके अनुवादसे भव्यसिद्धिक जीवोंने मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर अयोगिकेवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ १६५ ॥ अभवसिद्धिएहिं केवडियं खेत्तं फोसिदं ? सव्वलोगो ॥ १६६ ॥ अभव्यसिद्धिक जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? सर्व लोक स्पर्श किया है ॥ १६६॥ सम्मत्ताणुवादेण सम्मादिट्ठीसु असंजदसम्मादिट्टि पहुडि जाव अजोगिकेवलि त्ति ओघं ॥ १६७ ॥
सम्यक्त्वमार्गणाके अनुवाद से सम्यग्दृष्टियों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर अयोगिकेवल गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ १६७ ॥ खइयसम्मादिट्ठी असंजदसम्मादिट्ठी ओघं ॥ १६८ ॥
[ १, ४, १६४
क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ १६८ ॥ संजदासंजद पहुडि जात्र अजोगिकेवलीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो ।। १६९ ॥
क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंमें संयतासंयत गुणस्थानसे लेकर अयोगिकेवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ सजोगकेवली ओवं ॥ १७० ॥
क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंमें सयोगिकेवली जिनोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ १७० ॥
वेद सम्मादिट्ठी असंजदसम्मादिट्टि पहुडि जाव अप्पमत्तसंजदा त्ति ओघं ॥ वेदसम्यग्दृष्टि जीवोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर अप्रमत्तसंयत गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ १७१ ॥
उवसम सम्मादिट्ठी असंजदसम्मादिट्ठी ओघं ॥ १७२ ॥
उपशमसम्यग्दृष्टियों में असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ १७२ ॥ संजदासंजद पहुडि जाव उवसंतकसाय - वीदराग छदुमत्थेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १७३ ॥
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