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१३०] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, ५, १० नाना जीवोंकी अपेक्षा सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण है ॥ १०॥
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ ११ ॥ एक जीवकी अपेक्षा सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ ११ ॥
कोई एक मिथ्यादृष्टि जीव विशुद्ध होता हुआ सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ। पुनः सर्वलघु अन्तर्मुहूर्त काल सम्यग्मिथ्यादृष्टि रहकर विशुद्ध होता हुआ असंयमसहित सम्यक्त्वको प्राप्त हो गया। इस प्रकार एक जीवकी अपेक्षा सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त प्रमाण प्राप्त हो जाता है। अथवा संक्लेशको प्राप्त हुआ कोई वेदकसम्यग्दृष्टि जीव मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ और वहांपर सर्वलघु अन्तर्मुहूर्त काल रह करके संक्लेशके नष्ट हुए बिना ही मिथ्यात्वको प्राप्त हो गया । इस प्रकार भी सम्यग्मिथ्यात्वका वह जघन्य काल प्राप्त हो जाता है।
उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ १२ ॥ एक जीवकी अपेक्षा सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ १२ ॥
विशुद्धिको प्राप्त होनेवाला कोई एक मिथ्यादृष्टि जीव सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ और वहांपर सर्वोत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त काल' रहकर संक्लेशयुक्त होता हुआ मिथ्यात्वको प्राप्त हो गया। इस प्रकारसे एक जीवकी अपेक्षा सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त प्रमाण उपलब्ध हो जाता है। पूर्वनिर्दिष्ट इस गुणस्थानके जघन्य अन्तर्मुहूर्त कालसे यह उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त काल संख्यातगुणा है। अथवा, संक्लेशको प्राप्त होनेवाला कोई एक वेदकसम्यग्दृष्टि जीव सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ और वहांपर सर्वोत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त काल रह करके असंयतसम्यग्दृष्टि हो गया। इस प्रकारसे भी सम्यग्मिथ्यादृष्टिका वह उत्कृष्ट काल प्राप्त हो जाता है ।
असंजदसम्मादिट्ठी केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा ॥१३॥
असंयतसम्यग्दृष्टि जीव कितने काल होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल होते हैं ॥ १३ ॥
इसका कारण यह है कि अतीत, अनागत और वर्तमान इन तीनों ही कालोंमें कभी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका अभाव नहीं होता ।
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ १४ ॥ एक जीवकी अपेक्षा असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ १४ ॥
जिसने पहले असंयमसहित सम्यक्त्वमें बहुत बार परिवर्तन किया है ऐसा कोई एक मोह कर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्ता रखनेवाला मिथ्यादृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, संयतासंयत अथवा प्रमत्तसंयत जीव असंयतसम्यग्दृष्टि हुआ। वहांपर वह सर्वलघु अन्तर्मुहूर्त काल रह करके मिथ्यात्वको,
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