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१, ५, १८ ]
काला गमे ओघणिसो
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सम्यग्मिथ्यात्वको, संयमासंयमको अथवा अप्रमत्तभाव के साथ संयमको प्राप्त हुआ। इस प्रकार एक जीवकी अपेक्षा असंयतसम्यग्दृष्टिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त प्रमाण प्राप्त हो जाता है ।
उक्कस्सेण तेत्तीस सागरोत्राणि सादिरेयाणि ।। १५ ।।
एक जीवकी अपेक्षा असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका उत्कृष्ट काल साविक तेतीस सागरोपम है ॥ इसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है- एक प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंयत अथवा चारों उपशामकों में से कोई एक उपशामक जीव एक समय कम तेतीस सागरोपम प्रमाण आयु कर्मकी स्थितिवाले अनुत्तरविमानवासी देवोंमें उत्पन्न हुआ। फिर वहांसे च्युत होकर वह पूर्वकोटि प्रमाण आयुवाले मनुष्योंमें उत्पन्न हुआ और वहां अन्तर्मुहूर्त प्रमाण आयुके शेष रह जाने तक असंयतसम्यग्दृष्टि ही रहा । तत्पश्चात् अप्रमत्तभाव के साथ संयमको प्राप्त हुआ ( १ ) । पुनः प्रमत्त और अप्रमत्त गुणस्थानमें सहस्रों परिवर्तन करके ( २ ) क्षपकश्रेणीके योग्य विशुद्धिसे विशुद्ध हो अप्रमत्तसंयत हुआ (३) । पुनः अपूर्वकरण क्षपक ( ४ ) अनिवृत्तिकरण क्षपक ( ५ ) सूक्ष्मसाम्पराय क्षपक ( ६ ) क्षीणकषायवीतराग-छद्मस्थ (७) सयोगिकेवली ( ८ ) और अयोगिकेवली ( ९ ) हो करके सिद्ध हो गया । इस प्रकार इन नौ अन्तर्मुहूर्तोंसे कम और पूर्वकोटि वर्ष से अधिक तेतीस सागरोपम असंयतसम्यग्दृष्टिका उत्कृष्ट काल हो जाता है ।
संजदासंजदा केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा ॥ १६ ॥ संयतासंयत जीव कितने काल होते हैं । नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल होते हैं ॥ १६ ॥ एगजीवं पहुच जहणेण अंतोमुहुतं ॥ १७ ॥
१७ ॥
एक जीवकी अपेक्षा संयतासंयतोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त मात्र है ॥ - जिसने पहले भी बहुत बार संयमासंयम गुणस्थान में परिवर्तन किया है ऐसा कोई एक मोह कर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्ता रखनेवाला मिथ्यादृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि अथवा प्रमत्तसंयत जीव पुनः परिणामोंके निमित्तसे संयमासंयम गुणस्थानको प्राप्त हुआ। वहांपर सबसे कम अन्तर्मुहूर्त काल रह करके वह यदि प्रमत्तसंयत गुणस्थानसे संयतासंयत गुणस्थानको प्राप्त हुआ है तो मिथ्यात्वको, सम्यग्मिथ्यात्वको अथवा असंयतसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ । परन्तु यदि वह संयतासंयत होनेके पूर्व मिथ्यादृष्टि या असंयतसम्यग्दृष्टि रहा है तो वह अप्रमत्तभावके साथ संयमको प्राप्त हुआ । इस प्रकार संयतासंयत गुणस्थानका सूत्रोक्त जघन्य काल प्राप्त हो जाता है ।
उकस्सेण पुचकोडी देसूणा ॥ १८ ॥
एक जीवकी अपेक्षा उक्त संयतासंयत जीवोंका उत्कृष्ट काल कुछ कम एक पूर्वकोटि प्रमाण है ॥ १८ ॥
मोहकर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्ता रखनेवाला कोई एक तिर्यंच अथवा मनुष्य मिथ्यादृष्टि
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