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१, ४, १८३ ]
फोसणाणुगमे सण्णिमग्गणा
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संयतासंयत गुणस्थानसे लेकर उपशान्तकषाय-वीतराग-छद्मस्थ गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती उपशमसम्यग्दृष्टियोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ १७३ ॥
सासणसम्मादिट्ठी ओधं ॥ १७४ ॥ सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ १७४ ॥ सम्मामिच्छादिट्ठी ओघं ॥ १७५ ॥ सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ १७५ ॥ मिच्छादिट्ठी ओघं ॥ १७६ ॥ मिथ्यादृष्टि जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ १७६ ॥
सण्णियाणुवादेण सण्णीसु मिच्छादिवीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १७७ ।।
संज्ञिमार्गणाके अनुवादसे संज्ञी जीवोंमें मिथ्यादृष्टियोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ १७७ ।।
अट्ठ चोदसभागा देसूणा सव्वलोगो वा ॥ १७८ ॥
संज्ञी मिथ्यादृष्टि जीवोंने अतीत कालकी अपेक्षा विहारवत्स्वस्थान और वेदना, कषाय एवं बक्रियिक समुद्घातमें कुछ कम आठ बटे चौदह भाग तथा मारणान्तिकसमुद्घात और उपपाद पदोंकी अपेक्षा सर्व लोक स्पर्श किया है ॥ १७८ ॥
सासणसम्मादि टिप्पहुडि जाव खीणकसाय-वीदराग-छदुमत्था ओघं ॥ १७९ ॥
संज्ञी जीवोंमें सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर क्षीणकषाय-वीतराग-छमस्थ गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवी जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ १७९ ॥
असण्णीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? सव्वलोगो ॥ १८० ॥ असंज्ञी जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? सर्व लोक स्पर्श किया है ॥ १८० ॥ आहाराणुवादेण आहारएसु मिच्छादिट्ठी ओघं ॥ १८१ ॥ आहारमार्गणाके अनुवादसे आहारक जीवोंमें मिथ्यादृष्टियोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है। सासणसम्मादिटिप्पहुडि जाव संजदासंजदा ओघं ॥ १८२ ॥
सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर संयतासंयत गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती आहारक जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ १८२ ॥
पमत्तसंजदप्पहुडि जाव सजोगिकेवलीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स
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