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फोसणाणुगमे दंसणमग्गणा
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संजदासजदा ओघ ॥१३८ ।। संयतासंयत जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ १३८ ॥ असंजदेसु मिच्छादिटिप्पहुडि जाव असंजदसम्मादिहि त्ति ओघं ॥ १३९ ॥
असंयत जीवोमें मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती असंयत जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ १३९ ॥
दसणाणुवादेण चक्खुदंसणीसु मिच्छादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १४० ॥
दर्शनमार्गणाके अनुवादसे चक्षुदर्शनियोंमें मिथ्यादृष्टि जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ १४० ॥
अट्ट चोद्दसभागा देसूणा सव्वलोगो वा ॥ १४१ ॥
विहारवत्स्वस्थान और वेदना, कषाय एवं वैक्रियिक समुद्घातको प्राप्त हुए चक्षुदर्शनी मिथ्यादृष्टि जीवोंने अतीत और अनागत कालकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग और मारणान्तिकसमुद्घात व उपपाद पदसे परिणत उन्हींने सर्व लोकको स्पर्श किया है ॥ १४१ ॥
सासणसम्मादिटिप्पहुडि जाव खीणकसाय-वीदराग-छदुमत्था त्ति ओघं ॥१४२
सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर क्षीणकषाय-वीतराग-छद्मस्थ गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती चक्षुदर्शनी जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ १४२ ॥
__ अचक्खुदंसणीसु मिच्छादिट्टिप्पहुडि जाव खीणकसाय-वीदराग-छदुमत्था ति ओघं ॥ १४३॥
अचक्षुदर्शनियोंमें मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर क्षीणकषाय-वीतराग-छद्मस्थ गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती अचक्षुदर्शनी जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ १४३ ॥
ओधिदंसणी ओधिणाणिभंगो ॥ १४४ ।। अवधिदर्शनी जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र अवधिज्ञानियोंके समान है ॥ १४४ ॥ केवलदंसणी केवलणाणिभंगो ॥ १४५ ॥ केवलदर्शनी जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र केवलज्ञानियोंके समान है ॥ १४५ ॥ लेस्साणुवादण किण्हलेस्सिय-णीललेस्सिय-काउलेस्सियमिच्छादिट्ठी ओघ ॥१४६
लेश्यामार्गणाके अनुवादसे कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्यावाले मिथ्यादृष्टि जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ १४६ ॥
सासणसम्मादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेजदिभागो ॥१४७
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