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११६] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ४, ९९ उनके नहीं होते हैं । उपपाद पदमें वर्तमान कार्मणकाययोगी सासादनसम्यग्दृष्टि जीव मेहतलके नीचे पांच राजु और ऊपर छह राजु (१४) प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श करते हैं। .
असंजदसम्मादिट्ठीहि कवडियं खेत्तं फोसिदं? लोगस्स असंखेजदिभागो ॥९९॥
कार्मणकाययोगी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ! लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ ९९ ॥
छ चोदसभागा देसूणा ॥ १०० ॥
कार्मणकाययोगी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंमें तीनों कालोंकी अपेक्षा कुछ कम छह बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं ॥ १०० ॥
उपपाद पदमें वर्तमान तिर्यच असंयतसम्यग्दृष्टि जीव चूंकि मेरुतलसे ऊपर छह राजु तक जा करके उत्पन्न होते हैं, इसलिये उनका स्पर्शनक्षेत्र छह बटे चौदह ( ) भाग प्रमाण निर्दिष्ट किया गया है । यहां सासादनसम्यग्दृष्टियोंके समान मेरुतलसे नीचे पांच राजु प्रमाण स्पर्शन क्षेत्र नहीं पाया जाता है, क्योंकि, नारकी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका तिर्यंचोंमें उपपाद नहीं होता है ।
सजोगिकेवलीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जा भागा सव्वलोगो वा ॥ १०१ ॥
कार्मणकाययोगी सयोगिकेवलियोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यात बहुभाग और सर्व लोक स्पर्श किया है ॥ १०१ ॥
प्रतरसमुद्घातको प्राप्त सयोगिकेवलियोंने लोकके असंख्यात बहुभागको तथा लोकपूरणसमुद्घातको प्राप्त उन्हींने सर्व लोकको स्पर्श किया है ।
वेदाणुवादेण इथिवेद-पुरिसवेदएसु मिच्छादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असं वेज्जदिभागो ॥ १०२ ॥
__ वेदमार्गणाके अनुवादसे स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी जीवोंमें मिथ्यादृष्टियोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ १०२ ॥
अट्ठ चोद्दसभागा देसूणा सव्वलोगो वा ॥ १०३ ॥
स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी मिथ्यादृष्टि जीवोंने अतीत और अनागत कालकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग तथा सर्व लोक स्पर्श किया है ॥ १०३ ॥
सासणसम्मादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं? लोगस्स असंखेजदिभागो ॥१०४॥
__ स्त्री और पुरुषवेदी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ १०४ ॥
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