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फोसणागमे जोगमग्गणा
अ तेरह चोदसभागा वा देखणा ।। ९१ ॥
वैक्रियिककाययोगी मिथ्यादृष्टि जीवोंने अतीत व अनागत कालकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग और कुछ कम तेरह बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं ॥ ९१ ॥
अभिप्राय यह है कि विहारवत्स्वस्थान और वेदना, कषाय एवं वैक्रियिक समुद्घातको प्राप्त हुए वैक्रियिककाययोगी मिध्यादृष्टि आठ बटे चौदह भागोंको तथा मारणान्तिकसमुद्घातको प्राप्त हुए वे ही नीचे छह और ऊपर सात इस प्रकार तेरह बटे चौदह भागोंको स्पर्श करते हैं । सास सम्मादिट्ठी ओघं ॥ ९२ ॥
वैक्रियिककाययोगी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघ स्पर्शन के समान है ॥ ९२ ॥
१, ४, ९८ ]
सम्मामिच्छादिट्ठी असंजदसम्मादिट्ठी ओघं ॥ ९३ ॥
वैक्रियिककाययोगी सम्यग्मिध्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओधके समान है ॥ ९३ ॥
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उब्विय मिस्सकाय जोगीसु मिच्छादिट्ठि-सासणसम्मादिट्ठि असंजद सम्मादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ९४ ॥
वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें मिथ्यादृष्टि, सासादन सम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ ९४ ॥
आहारकायजोगि आहार मिस्सकायजोगीसु पमत्तसंजदेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेजदिभागो ।। ९५ ।।
'आहारकाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगियोंमें प्रमत्तसंयत जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ ९५ ॥
कम्मइयकायजोगीसु मिच्छादिट्ठी ओघं ॥ ९६ ॥
कार्मणकाययोगी जीवोंमें मिथ्यादृष्टि जीवोंकी स्पर्शनप्ररूपणा ओघके समान है ॥ ९६ ॥ सास सम्मादिट्ठीहि वडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदि भागो ।। ९-७ ।। कार्मणकाययोगी सासादनसम्यग्दृष्टियोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ ९७ ॥
एक्कारह चोहसभागा देसूणा ।। ९८ ।।
कार्मणका योगी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंने तीनों कालोंकी अपेक्षा कुछ कम ग्यारह बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं ॥ ९८ ॥
कार्मणकाययोगी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंके एक मात्र उपपाद पद ही होता है, शेष पद
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