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१, ४, ८२] फोसणाणुगमे जोगमग्गणा
[११३ त्रसकायिक लब्ध्यपर्याप्त जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त जीवोंके समान लोकका असंख्यातवां भाग है ।। ७३ ॥
जोगाणुवादेण पंचमणजोगि-पंचवचिजोगीसु मिच्छादिट्ठीहि केवडियं खेतं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥७४ ॥
योगमार्गणाके अनुवादसे पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगियोंमें मिथ्यादृष्टि जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है । ७४ ॥
अट्ठ चोद्दसभागा देसूणा सबलोगो वा ।। ७५ ॥
पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगी मिथ्यादृष्टि जीवोंने अतीत और अनागत कालकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग और सर्व लोक स्पर्श किया है ॥ ७५॥
सासणसम्मादिट्टिप्पहुडि जाव संजदासंजदा ओघं ।। ७६ ॥
सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर संयतासंयत गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगी जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ ७६ ॥
पमत्तसंजदप्पहडि जाव सजोगिकेवलीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ७७ ॥
__प्रमत्तसंयत गुणस्थानसे लेकर सयोगिकेवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती उक्त जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ ७७ ॥
कायजोगीसु मिच्छादिट्ठी ओघं ॥ ७८ ॥ काययोगियोंमें मिथ्यादृष्टि जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान सर्व लोक है ॥ ७८ ॥ सासणसम्मादिट्टिप्पहुडि जाव खीणकसाय-वीदराग-छदुमत्था ओघं ॥ ७९ ॥
सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर क्षीणकषाय-वीतराग-छमस्थ गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती काययोगी जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओधके समान है ॥ ७९ ॥
सजोगिकेवली ओघं ॥ ८० ॥
काययोगी सयोगिकेवलियोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान लोकका असंख्यातवां भाग असंख्यात बहुभाग और सर्वलोक है ॥ ८० ॥
ओरालियकायजोगीसु मिच्छादिट्ठी ओघं ॥ ८१ ॥ औदारिककायजोगी जीवोंमें मिथ्यादृष्टियोंका स्पर्शनक्षेत्र ओधके समान सर्व लोक है ॥८१॥ सासणसम्मादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो ||८२॥ औदारिककाययोगी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका
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