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छवखंडागमे जीवद्वाणं
[ १, ४, ६६
अपज्जत हुमपुढविकाइय-सुहुम आउकाइय- सुहुमते उकाइय-सुहुमवाउकाइय तस्सेव पज्जत्तअपज्जत्तएहि केवडियं खेत्तं फोसिदं १ सव्वलोगो ॥ ६६ ॥
कायमार्गणा अनुवाद से पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक व वायुकायिक जीव तथा बादर पृथिवीकायिक, बादर जलकायिक, बादर अग्निकायिक, बादर वायुकायिक और बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर जीव तथा इन्हीं पांचों बादर काय सम्बन्धी अपर्याप्त जीव, सूक्ष्म पृथ्वीकायिक, सूक्ष्म जलकायिक, सूक्ष्म अग्निकायिक, सूक्ष्म वायुकायिक तथा इन्हीं सूक्ष्म जीवोंके पर्याप्त और अपर्याप्त जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? सर्व लोक स्पर्श किया है ॥ ६६ ॥
बादरपुढ विकाइय- बादरआउकाइय बाद रते उकाइय- बादरवणफ दि काइय- पत्तेयसरपज्जत एहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ६७ ॥
बादर पृथिवीकायिक, बादर जलकायिक, बादर अग्निकायिक और बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥
सव्वलोगो वा ॥ ६८ ॥
अथवा उक्त जीवोंने अतीत और अनागत कालकी अपेक्षा सर्व लोक स्पर्श किया है ॥ ६८ ॥ बादरवाउकाइयपज्जत्तएहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स संखेज्जदिभागो ॥ बादर वायुकायिक पर्याप्त जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है : लोकका संख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ ६९ ॥
सव्वलोगो वा ॥ ७० ॥
अथवा, बादर वायुकायिक पर्याप्त जीवोंने अतीत और अनागत कालकी अपेक्षा सर्व लोक स्पर्श किया है ॥ ७० ॥
वणफदिकाइय- णिगोदजीव - बादर - सुहुम- पज्जत्त - अपज्जत्तएहि केवडियं खेत्तं फोसिदं । सव्वलोगो ॥ ७१ ॥
वनस्पतिकायिक जीव, निगोद जीव, वनस्पतिकायिक बादर जीव, वनस्पतिकायिक सूक्ष्म जीव, वनस्पतिकायिक बादर पर्याप्त जीव, वनस्पतिकायिक सूक्ष्म पर्याप्त जीव, वनस्पतिकायिक सूक्ष्म अपर्याप्त जीव, निगोद बादर पर्याप्त जीव, निगोद बादर अपर्याप्त जीव, निगोद सूक्ष्म पर्याप्त जीव और निगोद सूक्ष्म अपर्याप्त जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? सर्व लोक स्पर्श किया है ॥ ७१ ॥ तसकाइय-तसकाइयपज्जत्तएसु मिच्छादिट्ठिप्प हुडि जाव अजोगिकेवलि त्ति ओघं ॥
कायिक और त्रसकायिक पर्याप्त जीवोंमें मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर अयोगिकेवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ ७२ ॥ तसकाइय-अपज्जत्ताणं पंचिदिय अपज्जत्ताणं भंगो ॥ ७३ ॥
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