________________
१०८]
असंखेज्जदिभागो || ३८ ॥
उपर्युक्त तीन प्रकारके मनुष्यों में सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर अयोगिकेवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ ३८ ॥
छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
सजोगकेवलीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो, असंखेजा वा भागा सव्वलोगो वा ॥ ३९ ॥
[ १, ४, ३८
उपर्युक्त मनुष्यों में सजोगिकेवली जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग, असंख्यात बहुभाग और सर्व लोक स्पर्श किया है ॥ ३९ ॥
मणुस अपज्जते हि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ४० ॥ लब्ध्यपर्याप्त मनुष्योंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ ४० ॥
सव्वलोगो वा ॥ ४१ ॥
लब्ध्यपर्याप्त मनुष्योंने अतीत और अनागत कालकी अपेक्षा सर्व लोक स्पर्श किया है ॥ ४१ ॥ देवगदी देवेसु मिच्छादिट्ठि - सासणसम्मादिट्ठी हि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ४२ ॥
देवगति में देवों में मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ ४२ ॥
अट्ठ व चोदसभागा वा देसूणा || ४३ ||
देवोंमें मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि देवोंने अतीत और अनागत कालकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग और कुछ कम नौ बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं ॥ ४३ ॥ विहारवत्स्वस्थान तथा वेदना, कषाय व वैक्रियिक समुद्घातको प्राप्त हुए उक्त दो गुणस्थानवर्ती देवोंने आठ बटे चौदह भाग और मारणान्तिकसमुद्घातगत उक्त देवोंने नौ बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं, यह इस सूत्रका अभिप्राय समझना चाहिये ।
सम्माभिच्छादिट्ठि असंजदसम्मादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ४४ ॥
Jain Education International
सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि देवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है : लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ ४४ ॥
अ चोहसभागा वा देसूणा ।। ४५ ।।
सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि देवोंने अतीत और अनागत कालमें कुछ कम आठ
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org.