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१, ४, ५१ ]
बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं ॥ ४५ ॥
भवनवासिय- वाणवेंतर - जोदिसिय देवेसु मिच्छादिट्ठि - सासणसम्मादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ४६ ॥
फोसणागमे गदिमग्गणा
भवनवासी, वानव्यन्तर और ज्योतिष्क देवोंमें मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि जीवों कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ ४६ ॥
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अट्ठा वा अट्ठ णव चोदसभागा वा देसूणा ॥ ४७ ॥
मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि भवनत्रिक देवोंने अतीत और अनागत कालकी अपेक्षा लोकनालीके चौदह भागोंमें से कुछ कम साढ़े तीन भाग, आठ भाग और नौ भाग स्पर्श किये हैं ॥४७॥ विहारवत्स्व स्थान तथा वेदना, कषाय और वैक्रियिकसमुद्घातको प्राप्त हुए उक्त तीन प्रकारके मिथ्यादृष्टि और सासादन सम्यग्दृष्टि देव त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम साढ़े तीन भाग और आठ भागोंको स्पर्श करते हैं । कारण यह कि वे मेरु पर्वतके नीचे दो राजु और ऊपर सौधर्म विमान के शिखर के ध्वजादण्ड तक डेढ़ राजु तो स्वयं- बिना किसी अन्य देवकी प्रेरणाकेही विहार करते हैं तथा ऊपरके देवोंकी सहायता से मेरु पर्वत के नीचे दो राजु और ऊपर आरण-अच्युत कल्प तक छह राजु, इस प्रकार आठ राजु प्रमाण क्षेत्रमें विहार करते हैं । मारणान्तिकसमुद्घातकी अपेक्षा वे नीचे दो राजु और ऊपर सात राजु, इस प्रकार नौ राजु प्रमाण क्षेत्रको स्पर्श करते हैं । सम्मामिच्छादिट्टि असंजदसम्मादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ४८ ॥
सम्य मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि भवनत्रिक देवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ ४८ ॥
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अट्ठा वा अट्ठ चोदसभागा वा देसूणा ।। ४९ ।।
सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि भवनत्रिक देवोंने अतीत और अनागत कालकी अपेक्षा कुछ कम साढ़े तीन भाग और कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं ॥ ४९ ॥ सोधम्मीसाणकष्पवासियदेवेसु मिच्छादिट्ठिप्प हुडि जाव असंजदसम्मादिट्ठि ति देवोधं ।। ५० ।।
सौधर्म और ऐशान कल्पवासी देवोंमें मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती देवोंका स्पर्शनक्षेत्र सामान्य देवोंके स्पर्शन के समान है ॥५०॥ सण कुमार पहुडि जाव सदार- सहस्सारकप्पवासियदेवेसु मिच्छादिट्टि पहुडि जाव असंजदसम्मादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो ।। ५१ ।। सनत्कुमार कापसे लेकर शतार - सहस्रार कल्प तकके देवोंमें मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर
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