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४. फोसणाणुगमो
फोसणाणुगमेण दुविहो णिद्देसो ओघेण आदेसेण य ॥ १ ॥ स्पर्शनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है- ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश ॥ १ ॥
नामस्पर्शन, स्थापनास्पर्शन, द्रव्यस्पर्शन, क्षेत्रस्पर्शन, कालस्पर्शन और भावस्पर्शनके भेदसे स्पर्शन छह प्रकारका है। उनमें 'स्पर्शन' यह शब्द नामस्पर्शन निक्षेप है। यह वह है। इस प्रकारकी बुद्धिसे एक द्रव्यके साथ अन्य द्रव्यका एकत्व स्थापित करना स्थापनास्पर्शन निक्षेप है। जैसे- घट, पिठर ( पात्रविशेष ) आदिकमें ' यह ऋषभ है, यह अजित है, यह अभिनन्दन है, इत्यादि । द्रव्यस्पर्शन निक्षेप दो प्रकारका है- आगमद्रव्यस्पर्शन निक्षेप और नोआगमद्रव्यस्पर्शन निक्षेप । उनमें स्पर्शनविषयक प्राभृतका जानकार होकर वर्तमानमें तद्विषयक उपयोगसे रहित जीव आगमद्रव्यस्पर्शन निक्षेप है। नोआगमद्रव्यस्पर्शन निक्षेप ज्ञायकशरीर, भावी और तद्वयतिरिक्तके भेदसे तीन प्रकारका है। उनमें ज्ञायकशरीर नोआगमद्रव्यस्पर्शन भावी, वर्तमान और समुज्झितके भेदसे तीन प्रकारका है। जो जीव भविष्यमें स्पर्शनप्राभृतका जानकार होनेवाला है उसे भावी नोआगमद्रव्यस्पर्शन कहते हैं। तद्व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यस्पर्शन सचित्त, अचित्त और मिश्रके भेदसे तीन प्रकारका है। सचित्त द्रव्योंका जो परस्पर संयोग होता है वह सचित्त द्रव्यस्पर्शन कहलाता है। अचित्त द्रव्योंका जो परस्परमें संयोग होता है वह अचित्त द्रव्यस्पर्शन कहलाता है । चेतन-अचेतनस्वरूप छहों द्रव्योंके संयोगसे निष्पन्न होनेवाला मिश्र द्रव्यस्पर्शन उनसठ (५९) भेदोंमें विभक्त है।
शेष द्रव्योंका आकाश द्रव्यके साथ जो संयोग होता है वह क्षेत्रस्पर्शन कहा जाता है । काल द्रव्यका अन्य द्रव्योंके साथ जो संयोग है उसका नाम कालस्पर्शन है। भावस्पर्शन आगम और नोआगमके भेदसे दो प्रकारका है। स्पर्शनप्राभृतका जानकार होकर जो जीव वर्तमानमें तद्विषयक उपयोगसे सहित है उसको आगमभावस्पर्शन कहते हैं । स्पर्शगुणसे परिणत पुद्गल द्रव्यको नोआगमभावस्पर्शन कहते हैं।
उपर्युक्त छह प्रकारके स्पर्शनोंमेंसे यहांपर जीवद्रव्य सम्बन्धी क्षेत्रस्पर्शनसे प्रयोजन है। जो भूत कालमें स्पर्श किया गया है और वर्तमानमें स्पर्श किया जा रहा है उसका नाम स्पर्शन है। स्पर्शनके अनुगमको स्पर्शनानुगम कहते हैं । निर्देश, कथन और व्याख्यान ये तीनों समानार्थक शब्द हैं। स्पर्शनानुगमकी अपेक्षा वह निर्देश ओघनिर्देश और आदेशके भेदसे दो प्रकारका है ।
ओघेण मिच्छादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? सबलोगो ॥ २ ॥ ओघसे मिथ्यादृष्टि जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? सर्व लोक स्पर्श किया है ॥२॥
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