________________
१०२ ]
छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
इससे पूर्व क्षेत्रानुयोगद्वारमें समस्त मार्गणास्थानोंका अवलम्बन लेकर सब ही गुणस्थानों सम्बन्धी वर्तमान कालविशिष्ट क्षेत्रकी प्ररूपणा की जा चुकी है। अब इस अनुयोगद्वारमें पूर्वोक्त वर्तमान कालविशिष्ट क्षेत्रका स्मरण कराते हुए उन्हीं चौदह मार्गणाओंका अवलम्बन लेकर सब गुणस्थानों सम्बन्धी अतीत कालविशिष्ट क्षेत्रकी प्ररूपणा की जाती है। यथा- सामान्यसे सभी मिथ्यादृष्टि जीवोंने अतीत कालमें सर्व लोकका स्पर्श किया है। विशेषकी अपेक्षा स्वस्थानखस्थान, वेदना, कषाय व मारणान्तिक समुद्घातगत और उपपादपदगत मिथ्यादृष्टि जीवोंने अतीत और वर्तमान कालमें सर्व लोक स्पर्श किया है। विहारवत्स्वस्थान और वैक्रियिकसमुद्घातगत मिथ्यादृष्टि जीवोंने वर्तमान कालमें सामान्य लोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। अतीत कालकी अपेक्षा उन्होंने कुछ कम आठ बटे चौदह ( ) राजु क्षेत्र स्पर्श किया है । वह इस प्रकारसे-- लोकनालीके चौदह खण्ड करके मेरु पर्वतके मूल भागसे नीचेके दो खंडोको और ऊपरके छह खंडोंको एकत्रित करनेपर आठ बटे चौदह भाग हो जाते हैं । ये चूंकि तीसरी पृथिवीके नीचेके एक हजार योजनोंसे हीन होते हैं, इसीलिये कुछ कम कहा है।
सासणसम्मादिट्ठीहि केवडियं खत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ३ ॥
सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ ३ ॥
खस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय, वैक्रियिक और मारणान्तिक समुद्घातगत तथा उपपादपदगत सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंने वर्तमान कालमें सामान्य लोक आदि चार लोकोंका असंख्यातवां भाग तथा मनुष्यलोकसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है ।
अट्ठ बारह चोद्दसभागा वा देसूणा ॥ ४ ॥
सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंने अतीत कालकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग (2) तथा कुछ कम बारह बटे चौदह भाग (१४) प्रमाण क्षेत्र स्पर्श किया है ॥ ४ ॥
खस्थानस्वस्थान पदगत सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंने अतीत कालमें सामान्य लोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग और मनुष्यलोकसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियिक समुद्घातगत सासादनसम्यग्दृष्टियोंने कुछ कम बारह भाग (१४) प्रमाण क्षेत्रको स्पर्श किया है। वह इस प्रकारसे- सुमेरुके मूल भागसे लेकर ऊपर ईषत्प्राग्भार पृथिवी तक सात राजु और उसके नीचे छठी पृथिवी तक पांच राजु होते हैं। इन दोनोंको मिला देनेपर सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंके मारणान्तिक क्षेत्रकी लम्बाई हो जाती है। उपपादगत सासादनसम्यग्दृष्टियोंने कुछ कम ग्यारह बटे चौदह (११) भाग स्पर्श किये हैं । वह इस प्रकारसे- मेरुतलसे छठी पृथिवी तक पांच राजु और उसके ऊपर आरण-अच्युत कल्प
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org