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१,३, ९०]
खेत्तपमाणाणुगमे सण्णिमग्गणा __उवसमसम्मादिट्ठीसु असंजदसम्मादिहिप्पहुडि जाव उवसंतकसाय-वीदरागछदुमत्था केवडिखेत्ते ? लोगस्स असंखेज्जदिभागे ।। ८२ ॥
__उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर उपशान्तकषाय-वीतरागछद्मस्थ गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती उपशमसम्यग्दृष्टि जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ ८२ ॥
सासणसम्मादिट्ठी ओघं ।। ८३ ।। सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंका क्षेत्र ओघके समान है ॥ ८३ ॥ सम्मामिच्छाइट्ठी ओघं ।। ८४ ॥ सम्यमिथ्यादृष्टि जीवोंका क्षेत्र ओघके समान है ॥ ८४ ॥ मिच्छादिट्टी ओघ ॥ ८५ ॥ मिथ्यादृष्टि जीवोंका क्षेत्र ओघके समान है ॥ ८५ ॥ अब संज्ञीमार्गणाकी अपेक्षा क्षेत्रका निरूपण करते हैं-----
सणियाणुवादेण सण्णीसु मिच्छादिटिप्पहुडि जाव खीणकसाय-वीदरागछदुमत्था केवडिखेत्ते ? लोगस्स असंखेज्जदिभागे ॥ ८६ ॥
संज्ञीमार्गणाके अनुवादसे संज्ञी जीवोंमें मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर क्षीणकषाय-वीतरागछद्मस्थ गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती संज्ञी जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ।। ८६ ॥
असण्णी केवडिखेत्ते ? सव्वलोगे ॥ ८७ ॥ असंज्ञी जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? सर्व लोकमें रहते हैं ॥ ८७ ।। अब आहारमार्गणाकी अपेक्षा क्षेत्रका निरूपण करते हैं--- आहाराणुवादेण आहारएसु मिच्छादिट्ठी ओघं ॥ ८८ ।।
आहारमार्गणाके अनुवादसे आहारक जीवोंमें मिथ्यादृष्टियोंका क्षेत्र ओघके समान सर्व लोक है ॥ ८८ ॥
__ सासणसम्मादिटिप्पहुडि जाव सजोगिकेवली केवडिखेत्ते ? लोगस्स असंखेज्जदिभागे ॥ ८९ ॥
___ सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर सजोगिकेवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती आहारक जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ।। ८९ ॥
अणाहारएसु मिच्छादिट्ठी ओघं ।। ९० ॥ अनाहारकोंमें मिथ्यादृष्टि जीवोंका क्षेत्र ओघके समान सर्व लोक है ।। ९० ॥
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