________________
९८]
छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ३, ७४ तेउलेस्सिय-पम्मलेस्सिएसु मिच्छाइटिप्पहुडि जाव अप्पमत्तसंजदा केवडिखेत्ते ? लोगस्स असंखेज्जदिभागे ॥ ७४ ॥
तेजोलेश्यावाले और पद्मलेश्यावाले जीवोंमें मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर अप्रमत्तसंयत गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवी जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ ७४ ॥
सुक्कलेस्सिएसु मिच्छादिटिप्पहुडि जाव खीणकसाय-वीदराग-छदुमत्था केवडिखेत्ते ? लोगस्स असंखेज्जदिभागे । ७५ ॥
शुक्ललेश्यावाले जीवोंमें मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर क्षीणकषाय-वीतराग-छद्मस्थ गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती शुक्ललेश्यावाले जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ ७५ ॥
सजोगिकेवली ओघं ॥ ७६ ।। शुक्ललेश्यावाले सयोगिकेवलियोंका क्षेत्र ओघके समान है ।। ७६ ॥ अब भव्यमार्गणाकी अपेक्षा क्षेत्रका निरूपण करते हैंभवियाणुवादेण भवसिद्धिएसु मिच्छादिटिप्पहुडि जाव अजोगिकेवली ओघ ।।७७
भव्यमार्गणाके अनुवादसे भव्यसिद्धिक जीवोंमें मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर अयोगिकेवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवी जीवोंका क्षेत्र ओघक्षेत्रके समान है ॥ ७७ ॥
अभवसिद्धिएसु मिच्छादिट्ठी केवडिखेत्ते ? सव्वलोए ॥ ७८ ॥ अभव्यसिद्धिक जीवोंमें मिथ्यादृष्टि जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? सर्व लोकमें रहते हैं ॥७८॥ अब सम्यक्त्वमार्गणाकी अपेक्षा क्षेत्रका निरूपण करते हैं
सम्मत्ताणुवादेण सम्मादिद्वि-खइयसम्मादिट्ठीसु असंजदसम्मादिटिप्पहुडि जाव अजोगिकेवली ओघं ॥ ७९ ॥
सम्यक्त्वमार्गणाके अनुवादसे सम्यग्दृष्टि और क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें असंयतसभ्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर अयोगिकेवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवी जीवोंका क्षेत्र ओघके समान है ॥ ७९ ॥
सजोगिकेवली ओघं ॥ ८० ॥ उक्त जीवोंमें सयोगिकेवली जीवोंका क्षेत्र ओघकथित क्षेत्रके समान है ॥ ८० ॥
वेदगसम्मादिट्ठीसु असंजदसम्मादिटिप्पहुडि जाव अप्पमत्तसंजदा केवडिखेत्ते ? लोगस्स असंखेजदिभागे ॥ ८१ ॥
वेदकसम्यग्दृष्टियोमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर अप्रमत्तसंयत गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती वेदकसम्यग्दृष्टि जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥८१॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org .