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९६] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, ३, ५५ तक प्रत्येक गुणस्थानवी जीव लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ ५५ ॥
केवलणाणीसु सजोगिकेवली ओघं ॥ ५६ ।। केवलज्ञानियोंमें सयोगिकेवलीका क्षेत्र ओघ क्षेत्रके समान है ॥ ५६ ॥ अजोगिकेवली ओघं ॥ ५७ ॥ केवलज्ञानियोंमें अयोगिकेवली भगवान् ओघके समान लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं । अब संयममार्गणाकी अपेक्षा क्षेत्रका निरूपण करते हैं..... संजमाणुवादेण संजदेसु पमत्तसंजदप्पहुडि जाव अजोगिकेवली ओघं ॥ ५८ ॥
संयममार्गणाके अनुवादसे संयतोंमें प्रमत्तसंयत गुणस्थानसे लेकर अयोगिकेवली गुणस्थान • तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती संयत जीव ओघके समान लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ ५८ ॥
सजोगिकेवली ओघं ॥ ५९॥
संयतोंमें सयोगिकेवली भगवान् ओघके समान लोकके असंख्यातवें भागमें, लोकके असंख्यात बहुभागोंमें और सर्व लोकमें रहते हैं ॥ ५९ ॥
____सामाइयच्छेदोवट्ठावण-सुद्धिसंजदेसु पमत्तसंजदप्पहुडि जाव अणियट्टि त्ति ओघं ॥६० ॥
___सामायिक और छेदोपस्थापना शुद्धिसंयतोंमें प्रमत्तसंयत गुणस्थानसे लेकर अनिवृत्तिकरण गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती सामायिक और छेदोपस्थापना शुद्धिसंयत जीव ओघके समान लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ ६० ॥
परिहारसुद्धिसंजदेसु पमत्त-अपमत्तसंजदा केवडिखेत्ते ? लोगस्स असंखेज्जदिभागे ॥ ६१ ॥
परिहारविशुद्धिसंयतोंमें प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ ६१ ॥
सुहुमसांपराइय-सुद्धिसंजदेसु सुहुमसांपराइय-सुद्धिसंजद-उवसमा खवगा केवडिखेत्ते ? लोगस्स असंखेज्जदिभागे ॥ ६२ ॥
सूक्ष्मसाम्परायिक शुद्धिसंयतोंमें सूक्ष्मसाम्परायिक-शुद्धिसंयत उपशमक और क्षपक जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ ६२ ॥
जहाक्खाद-विहार-सुद्धिसंजदेसु चदुट्टाणमोघं ।। ६३ ॥
यथ्याख्यात-विहार-शुद्धिसंयतोंमें उपशान्तकषाय गुणस्थानसे लेकर अयोगिकेवली गुणस्थान तक चारों गुणस्थानवाले संयतोंका क्षेत्र ओघके समान है ।। ६३ ।।
संजदासजदा केवडिखत्ते ? लोगस्स असंखेज्जदिभागे ।। ६४ ॥
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