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१, ३, ७३ ] खेत्तपमाणाणुगमे दंसणमग्गणा
[९७ संयतासंयत जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ ६४ ॥ असंजदेसु मिच्छादिट्ठी ओघं ॥६५॥ असंयतोंमें मिथ्यादृष्टि जीव ओधके समान सर्व लोकमें रहते हैं ॥ ६५ ॥ सासणसम्मादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी असंजदसम्मादिट्ठी ओघं ॥ ६६ ॥
असंयतोंमें सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीव ओघके समान लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ ६६ ॥
अब दर्शनमार्गणाकी अपेक्षा क्षेत्रका निरूपण करते हैं
दंसणाणुवादेण चक्खुदंसणीसु मिच्छादिटिप्पहुडि जाव खीणकसाय-वीदरागछदुमत्था केवडिखेत्ते ? लोगस्स असंखेज्जदिमागे ॥ ६७ ।।
दर्शनमार्गणाके अनुवादसे चक्षुदर्शनियोंमें मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर क्षीणकषायवीतराग-छद्मस्थ गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवी जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ ६७ ॥
अचक्खुदंसणीसु मिच्छादिट्ठी ओघं ॥ ६८ ।। अचक्षुदर्शनियोंमें मिथ्यादृष्टि जीव ओधके समान सर्व लोकमें रहते हैं ॥ ६८ ॥ सासणसम्मादिट्टिप्पहुडि जाव खीणकसाय-वीदराग-छदुमत्था त्ति ओघं ॥६९॥
सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर क्षीणकषाय-वीतराग-छद्मस्थ गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती अचक्षुदर्शनी जीव ओघके समान लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ ६९ ॥
ओहिदंसणी ओहिणाणिभंगो ॥७० ॥ अवधिदर्शनी जीवोंका क्षेत्र अवधिज्ञानियोंके समान लोकका असंख्यातवां भाग है ॥७॥ केवलदंसणी केवलणाणिभंगो ।। ७१ ॥
केवलदर्शनी जीवोंका क्षेत्र केवलज्ञानियोंके समान लोकका असंख्यातवां भाग, लोकका असंख्यात बहुभाग और सर्व लोक है ॥ ७१ ॥
अब लेश्यामार्गणाकी अपेक्षा क्षेत्रका निरूपण करते हैंलेस्साणुवादेण किण्हलेस्सिय-णीललेस्सिय-काउलेस्सिएसु मिच्छादिट्ठी ओघं ॥
लेश्यामार्गणाके अनुवादसे कृष्णलेश्यावाले, नीललेश्यावाले और कापोतलेश्यावाले जीवोंमें मिथ्यादृष्टि जीव ओघके समान सर्व लोकमें रहते हैं ॥ ७२ ॥
सासणसम्मादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी असंजदसम्मादिट्ठी ओधं ॥ ७३ ।।
उक्त तीनों अशुभलेश्यावाले सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीव ओघके समान लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ ७३ ॥
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