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८०] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १, १५५ दसणाणुवादेण चक्खुदंसणीसु मिच्छाइट्ठी दवपमाणण केवडिया? असंखेज्जा।।
दर्शनमार्गणाके अनुवादसे चक्षुदर्शनी जीवोंमें मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? असंख्यात हैं ॥ १५५ ॥
असंखज्जासंखेज्जाहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहि अवहिरंति कालेण ॥ १५६ ॥
कालकी अपेक्षा चक्षुदर्शनी मिथ्यादृष्टि जीव असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियोंके द्वारा अपहृत होते हैं ॥ १५६ ॥
खेत्तेण चक्खुदंसणीसु मिच्छाइट्ठीहि पदरमवहिरदि अंगुलस्स संखेज्जदिभागवग्गपडिभाएण ॥ १५७ ॥
... क्षेत्रकी अपेक्षा चक्षुदर्शनियोंमें मिथ्यादृष्टि जीवोंके द्वारा सूच्यंगुलके संख्यातवें भागके वर्गरूप प्रतिभागसे जगप्रतर अपहृत होता है ॥ १५७ ॥
सासणसम्माइटिप्पहुडि जाव खीणकसाय-वीदराग छदुमत्था त्ति ओघं ॥१५८॥
सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर क्षीणकषाय-वीतराग-छद्मस्थ गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती चक्षुदर्शनी जीव ओवप्ररूपणाके समान हैं ॥ १५८ ॥
अचक्खुदंसणीसु मिच्छाइट्टिप्पहुडि जाव खीणकसाय-वीदराग-छदुमत्था त्ति ओषं ॥ १५९ ।।
__ अचक्षुदर्शनियोंमें मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर क्षीणकषाय-वीतराग-छद्मस्थ गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवी जीव ओघ प्ररूपणाके समान हैं ॥ १५९ ॥
इसका कारण यह है कि सब ही छद्मस्थ जीवोंके अचक्षुदर्शनावरणका क्षयोपशम पाया जाता है । इसलिये उनका प्रमाण ओघप्ररूपणाके समान कहा गया है।
ओहिदंसणी ओहिणाणिभंगो ।। १६० ॥ अवधिदर्शनी जीवोंकी द्रव्यग्ररूपणा अवधिज्ञानियोंके समान है ॥ १६० ॥ केवलदंसणी केवलणाणिभंगो ॥१६१ ।। केवलदर्शनी जीवोंकी द्रव्यप्ररूपणा केवलज्ञानियोंके समान है ॥ १६१ ॥
चूंकि केवलज्ञानसे रहित केवलदर्शन पाया नहीं जाता है, अतएव इन दोनोंका प्रमाण समान है।
अब लेश्या मार्गणाकी अपेक्षा जीवोंकी संख्याका निरूपण करते हैं
लेस्साणुवादेण किण्हलेस्सिय-णीलले स्सिय-काउलस्सिएसु मिच्छाइट्ठिप्प हुडि जाव असंजदसम्माइढि ति ओघं ॥ १६२ ॥
लेश्यामार्गणाके अनुवादसे कृष्णलेश्यावाले, नीललेश्यावाले और कापोतलेश्यावाले
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