________________
दव्वपमाणाणुगमे संजममग्गणा
अब संयममार्गणाकी अपेक्षा जीवोंकी संख्याका निरूपण करते हैं
संजमाणुवादेण संजदेसु पमत्तसंजद पहुडि जाव अजोगिकेवलि त्ति ओघं ॥
संयममार्गणाके अनुवाद से संयत जीवोंमें प्रमत्तसंयत गुणस्थानसे लेकर अयोगिकेवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती जीवोंकी द्रव्यप्ररूपणा सामान्य प्ररूपणाके समान है ॥१४८॥ प्रमत्तसंयत गुणस्थानसे लेकर ऊपरके सभी गुणस्थानवर्ती जीव संयत ही होते हैं, इसलिये यहां सामान्यसे ओघ प्ररूपणा कही गई है ।
१, २, १५४ ]
सामाइय-छेदोवडावण- सुद्धि-संजदेसु पमत्तसंजद पहुडि जाव अणियट्टि बादरसांपराइय-पविट्ठ उवसमा खवा त्ति ओघं ॥ १४९ ॥
[ ७९
सामायिक और छेदोपस्थापना शुद्धिसंयत जीवोमें प्रमत्तसंयत गुणस्थान से लेकर अनिवृत्तिबादर - साम्परायिक-प्रविष्ट उपशमक और क्षपक गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती जीव ओघप्ररूपणाके समान संख्यात हैं ॥ १४९ ॥
परिहार सुद्धिसंजदेसु पमत्तापमत्तसंजदा दव्वपमाणेण केवडिया ? संखेज्जा ।। परिहारविशुद्धि-संयतोंमें प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ! संख्यात हैं ॥ १५० ॥
सुहुमसांपराइय- सुद्धिसंजदेसु सुहुमसांपराइय- सुद्धिसंजदा उवसमा खवा दव्वपमाणेण केवडिया ? ओघं ।। १५१ ।।
सूक्ष्मसाम्परायिक-शुद्धिसंयत जीवोंमें सूक्ष्मसाम्परायिक शुद्धिसंयत उपशमक और क्षपक जीव द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? ओघ प्ररूपणाके समान हैं ॥ १५१ ॥
जहाक खाद विहारसुद्धिसंजदेसु चउट्ठाणं ओघं ॥ १५२ ॥
यथाख्यातविहार-शुद्धिसंयतोंमें ग्यारहवें, बारहवें, तेरहवें और चौदहवें गुणस्थानवर्ती जीवोंकी द्रव्यप्ररूपणा सामान्य प्ररूपणाके समान है ॥ १५२ ॥
संजदासंजदा दव्यमाणेण केवडिया ? ओघं ।। १५३ ।। संयतासंयत जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ?
असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं ॥ १५३ ॥
असंजदेसु मिच्छाइट्टि पहुडि जाव असंजदसम्माइट्टि त्ति दव्वपमाणेण केवडिया ? ओघ ॥ १५४ ॥
Jain Education International
ओघप्ररूपणाके समान पल्योपमके
असंयतोंमें मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान तक जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? सामान्य प्ररूपणा के समान हैं ॥ १५४ ॥
अब दर्शनमार्गणाकी अपेक्षा जीवोंकी संख्याका निरूपण करते हैं
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org