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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, ३, २६ तसकाइय-तसकाइयपज्जत्तएसु मिच्छाइट्टि पहुडि जाव अजोगिकेवलि ति केवडिखेत्ते ? लोगस्स असंखेज्जदिभागे || २६ ॥
कायिक और त्रसकायिक पर्याप्त जीवों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर अयोगिकेवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भाग में रहते हैं ॥ २६॥
२ ]
सजोगिकेवली ओधं ॥ २७ ॥
सयोगिकेवलीका क्षेत्र ओघनिरूपित सयोगिकेवलीके क्षेत्रके समान है ॥ २७ ॥ तसकाइ अपत्ता पंचिदिय - अपजत्ताणं भंगो ॥ २८ ॥
त्रसकायिक लब्ध्यपर्याप्त जीवोंका क्षेत्र पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकोंके क्षेत्रके समान है ॥ २८ ॥ अब योगमार्गणाकी अपेक्षा क्षेत्रका निरूपण करते हैं---
जोगाणुवादेण पंचमणजोगि- पंचवचिजोगीसु मिच्छादिट्ठिप्प हुडि जाव सजोगिकेवली वडिखेत्ते ? लोगस्स असंखेज्जदिभागे ॥ २९ ॥
योगमार्गणा अनुवाद से पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगियोंमें मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर सयोगिकेवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ २९ ॥
कायजोगीसु मिच्छाइट्ठी ओघं ॥ ३० ॥
काययोगियों में मिथ्यादृष्टि जीवोंका क्षेत्र ओधके समान सर्व लोक है ॥ ३० ॥ सासणसम्मादिट्टि पहुडि जाव खीणकसाय- वीदराग-छदुमत्था केवडिखेत्ते १ लोगस्स असंखेज्जदिभागे ।। ३१ ।।
काययोगियों में सासादन सम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर क्षीणकषाय - वीतराग छद्मस्थ गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ ३१ ॥ अयोगिकेवलियोंके योगका अभाव हो जानेसे यहां सूत्रमें उनका ग्रहण नहीं किया गया है। सजोगिकेवली ओघं ॥ ३२ ॥
काययोगवाले जीवोंमें सयोगिकेवलीका क्षेत्र ओघप्ररूपित सयोगिकेवलीके क्षेत्र के समान है ॥
पूर्वोक्त सासादनसम्यग्दृष्टि आदि गुणस्थानवर्ती जीवोंकी अपेक्षा चूंकि सयोगिकेवलियों में यह विशेषता पायी जाती है कि वे लोकके असंख्यातवें भागके साथ लोकके असंख्यात बहुभाग तथा समस्त लोक में भी रहते हैं, अतएव उनकी प्ररूपणा पूर्व सूत्रके द्वारा न करके इस सूत्रके द्वारा पृथक् की गई है।
ओरालियकाय जोगीसु मिच्छाइट्ठी ओघं ॥ ३३ ॥
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