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छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, ३, ४
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यद्यपि व्यवस्थावाची ‘प्रभृति' शब्दके द्वारा सभी गुणस्थानोंका ग्रहण सम्भव है, तो भी यहांपर सयोगिकेवली गुणस्थानका ग्रहण नहीं करना चाहिये; क्योंकि, आगे इसका अपवादसूत्र कहा जानेवाला है । स्वस्थान - स्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदनासमुद्धात, कषायसमुद्वात और वैक्रियिकसमुद्घातरूपसे परिणत हुए सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, और असंयतसम्यग्दृष्टि जीव सामान्य लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रमें, ऊर्ध्वलोक आदि तीन लोकोंके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रमें और मनुष्यलोकसे असंख्यातगुणित क्षेत्र में रहते हैं । इसी प्रकार मारणान्तिकसमुद्धात और उपपादगत सासादनसम्यग्दृष्टि तथा असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका क्षेत्र जानना चाहिये । इतना विशेष है कि उक्त जीवोंकी राशिका जो प्रमाण है उसका असंख्यातवां भाग ही मारणान्तिकसमुद्घातगत और उपपादगत रहता है। इसी प्रकार संयतासंयतोंका भी क्षेत्र जानना चाहिये । इतना विशेष है कि उनके उपपाद नहीं होता है । प्रमत्तसंयतादि ऊपरके सर्व संयत जीव सामान्य लोक आदि चार लोकोंके असंख्यातवें भागमें और मनुष्यलोकके संख्यातवें भागमें रहते हैं । किन्तु मारणान्तिकसमुद्घातगत संयत जीव मनुष्यलोकसे असंख्यातगुणित क्षेत्रमें रहते हैं । यहां यह बात ध्यानमें रखना चाहिये कि प्रमत्तसंयतके आहारक और तैजस समुद्धात भी होता है । आहारकसमुद्घातगत प्रमत्तसंयतोंका क्षेत्र तो ऊपर कहे अनुसार ही है । किन्तु तैजससमुद्घातका क्षेत्र नौ योजन प्रमाण विष्कम्भ और बारह योजन प्रमाण आयामवाले क्षेत्रको सूच्यंगुलके संख्यातवें भाग प्रमाण बाहल्यसे गुणित करने पर एक जीवगत तैजसमुद्घातका क्षेत्र होता है । इसे इसके योग्य संख्यातसे गुणित करनेपर तैजससमुद्घातके सर्व क्षेत्रका प्रमाण आता है ।
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सजोगिकेवली केवडिखेत्ते ? लोगस्स असंखजदिभागे असंखेजेसु वा भागेसु सव्वलोगे वा ॥ ४॥
सयोगिकेवली जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र में, अथवा लोकके असंख्यात बहुभाग प्रमाण क्षेत्रमें, अथवा सर्व लोकमें रहते हैं ॥ ४ ॥
दण्डसमुद्घातगत केवली सामान्य लोक आदि चारों लोकोंके असंख्यातवें भाग तथा अढ़ाई द्वीप सम्बन्धी क्षेत्र से असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं । कपाटसमुद्घातगत केवली सामान्यलोक, अधोलोक और ऊर्ध्वलोक इन तीन लोकोंके असंख्यातवें भाग; तिर्यग्लोकके संख्यातवें भाग तथा अढ़ाई द्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं । प्रतरसमुद्घातगत केवली लोकके असंख्यात बहुभाग प्रमाण क्षेत्रमें रहते हैं । इसका कारण यह है कि लोकके असंख्यातवें भाग मात्र जो वातवलयरुद्ध क्षेत्र है उसको छोड़कर शेष बहुभाग प्रमाण सब ही क्षेत्रमें प्रतरसमुद्धातगत केवली रहते हैं । लोकपूरणसमुद्घातगत केवली समस्त लोक में रहते हैं ।
इस प्रकार ओघकी अपेक्षा क्षेत्रकी प्ररूपणा करके अब आगे आदेशकी अपेक्षा उक्त क्षेत्रकी प्ररूपणा की जाती है
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