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छक्खंडागमे जीवट्टणं
अव्वकरण पहुडि जाव सजोगिकेवलि त्ति ओघं ॥ १७१ ॥ अपूर्वकरण गुणस्थान से लेकर सयोगिकेवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती शुक्रयावाले जीवोंकी द्रव्यप्ररूपणा सामान्य प्ररूपणाके समान है ॥ १७१ ॥
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चूंकि अपूर्वकरण आदि गुणस्थानों में शुक्लेश्याको छोड़कर दूसरी कोई लेश्या नहीं पाई जाती है, अतएव अपूर्वकरण आदि गुणस्थानोंमें ओघप्रमाण ही शुक्ललेश्यावालोंका प्रमाण है । अयोगिकेवली जीव लेश्यारहित हैं, क्योंकि, उनमें कर्मलेपका कारणभूत योग और कषायें नहीं पायी जाती हैं ।
अब भव्यमार्गणाकी अपेक्षा जीवोंकी संख्याका निरूपण करते हैं
भवियाणुवादेण भवसिद्धिएसु मिच्छाइट्टि पहुडि जाव अजोगिकेवलि त्ति ओघं ॥ भव्यमार्गणाके अनुवादसे भव्यसिद्धिकोंमें मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर अयोगिकेवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती जीवोंकी द्रव्यप्ररूपणा सामान्य प्ररूपणाके समान है ॥ १७२॥ अभवसिद्धिया दव्वपमाणेण केवडिया ! अणंता ॥ १७३ ॥
अभव्यसिद्धिक जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? अनन्त हैं ॥ १७३ ॥ अब सम्यक्त्वमार्गणाकी अपेक्षा जीवोंकी संख्याका निरूपण करते हैं-सम्मत्ताणुवादेण सम्माइट्ठीसु असंजद सम्माइट्ठिप्प हुडि जाव अजोगिकेवलि चि
ओघं ।। १७४ ।।
[ १, २, १७१
सम्यक्त्वमार्गणाके अनुवाद से सम्यग्दृष्टियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर अयोगकेवल गुणस्थान तकके जीवोंकी द्रव्यप्ररूपणा सामान्य प्ररूपणाके समान है ॥ १७४ ॥
खइयसम्माइट्ठीसु असंजदसम्माइट्ठी ओघं ।। १७५ ।।
क्षायिक सम्यग्दृष्टियों में असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंकी द्रव्यप्ररूपणा सामान्य प्ररूपणाके समान है ॥ १७५ ॥
संजदासंजद पहुडि जाव उवसंत कसाय - वीयराग- छदुमत्था दव्वपमाणेण केवडिया ? संखेज्जा ॥ १७६ ॥
संयतासंयत गुणस्थान से लेकर उपशान्तकषाय- वीतराग- छद्मस्थ गुणस्थान तक क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? संख्यात हैं ॥ १७६ ॥
चउन्हं खवा अजोगिकेवली ओघं ।। १७७ ॥
चारों क्षपक और अयोगिकेवली जीव ओघप्ररूपणा के समान हैं । १७७ ॥
सोगिकेवली ओधं ॥ १७८ ॥
सयोगिकेवली जीवोंकी द्रव्यप्ररूपणा सामान्य प्ररूपणाके समान हैं ॥ १७८ ॥
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