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१, २, १८८ ] दव्वपमाणाणुगमे सण्णिमग्गणा
[८३ वेदगसम्माइट्ठीसु असंजदसम्माइटिप्पहुडि जाव अप्पमत्तसंजदा त्ति ओघं ॥
वेदकसम्यग्दृष्टियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर अप्रमत्तसंयत गुणस्थान तकके जीवोंकी द्रव्यप्ररूपणा सामान्य प्ररूपणाके समान है ॥ १७९ ॥
उवसमसम्माइट्ठीसु असंजदसम्माइट्ठी संजदासजदा ओघं ॥ १८० ॥
उपशमसम्यग्दृष्टियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत जीवोंकी द्रव्यप्ररूपणा सामान्य प्ररूपणाके समान है ॥ १८० ॥
. पमत्तसंजदप्पहुडि जाव उवसंतकसाय-बीदराग-छदुमत्था त्ति दव्वपमाणेण केवडिया ? संखेज्जा ॥ १८१ ॥
- प्रमत्तसंयत गुणस्थानसे लेकर उपशान्त-कषाय-वीतराग-छद्मस्थ गुणस्थान तक उपशमसम्यग्दृष्टि जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? संख्यात हैं ॥ १८१ ॥
सासणसम्माइट्ठी ओघं ॥ १८२ ॥ सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंकी द्रव्यप्ररूपणा सामान्य प्ररूपणाके समान है ॥ १८२ ॥ सम्मामिच्छाइट्ठी ओघं ॥ १८३ ।। सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंकी द्रव्यप्रमाणप्ररूपणा ओघ प्ररूपणाके समान है ॥ १८३ ॥ मिच्छाइट्ठी ओघं ।। १८४ ॥ मिथ्यादृष्टि जीवोंकी द्रव्यप्रमाणप्ररूपणा सामान्य प्ररूपणाके समान है ॥ १८४ ॥ अब संज्ञीमार्गणाकी अपेक्षा जीवोंकी संख्याका निरूपण करते हैंसण्णियाणुवादेण सण्णीसु मिच्छाइट्ठी दव्वपमाणेण केवडिया ? देवेहि सादिरेयं ।
संज्ञीमार्गणाके अनुवादसे संज्ञियोंमें मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? देवोंसे कुछ अधिक हैं ॥ १८५ ॥
__ सब देव मिथ्यादृष्टि संज्ञी ही हैं, और चूंकि शेष तीन गतियोंके संज्ञी मिथ्यादृष्टि जीव उन देवोंके संख्यातवें भाग ही हैं; अतएव यहां संज्ञी मिथ्यादृष्टि जीवोंका प्रमाण देवोंसे कुछ अधिक निर्दिष्ट किया गया है।
सासणसम्माइटिप्पहुडि जाव खीणकसाय-वीदराग-छदुमत्था त्ति ओघं ॥१८६॥
सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर क्षीणकषाय-वीतराग-छद्मस्थ गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती संज्ञी जीवोंकी द्रव्यप्ररूपणा सामान्य प्ररूपणाके समान है ॥ १८६ ॥
असण्णी दव्वपमाणेण केवडिया ? अणंता ॥ १८७ ॥ असंज्ञी जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? अनन्त हैं ॥ १८७ ॥ अणंताणताहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहि ण अवहिरंति कालेण ।। १८८ ।।
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