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पाई जाती हैं । इन २३ वर्गणाओंकी प्ररूपणा करनेवाली तीन गाथाएं कम्मपयडीमें (गा. १५२० । बन्धनकरण पत्र ३९ ) पाई जाती हैं, पर उनकी विशेषता यह है कि उनमें ध्रुव, शून्य, आदि पदोंके स्पष्ट उल्लेखके साथ उनके गुणकार आदिका भी निर्देश पाया जाता है । इन तीनों गाथाओं की व्याख्यात्मक चूर्णि कम्मपयडीमें दो प्रकारकी है- एक सामान्यसे कथन करनेवाली और दूसरी विशेषसे कथन करनेवाली । सामान्यसे २३ वर्गणाओंका वर्णन करनेवाली चूर्णि षट्खण्डागमके सूत्रोंके साथ शब्दशः समान है । ( देखो कम्मपयडी, बन्धनकरण, पत्र ३९ )
प्रस्तावना
कम्मपयडीकी उपर्युक्त उद्धरणों और साम्य-स्थलोंके प्रकाश में सहजही यह प्रश्न उठता हैं कि, क्या षट्खण्डागमकारके सामने कम्मपयडी थी, और क्या उसे आधार बना करके उन्होंने अपने ग्रन्थकी रचना की है ?
यहां यह आक्षेप किया जा सकता है कि षट्खण्डागमकी रचना तो विक्रमकी दूसरीतीसरी शताब्दी के लगभग हुई है, जब कि कम्मपयडी की रचना आ. शिवशर्मने विक्रमकी पांचवीं शताब्दी के आस-पास की है, तब यह कैसे सम्भव है कि अपनेसे परवर्ती रचनाका उपयोग षट्खण्डागमकारनें किया हो ?
इस आक्षेपका समाधान यह है कि शिवशर्मका समय विक्रमकी पांचवीं शताब्दी माना जाता है, यह ठीक है । और यहभी ठीक है कि उन्होंने कम्मपयडीका वर्तमानरूपमें संकलन पीछे किया है । पर इस विषय में कम्मपयडीकी चूर्णिकारके निम्न उत्थानिका वाक्य अवलोकनीय हैं । वे लिखते हैं
इममि जिणसासणे दुस्समाबलेण खीयमाणमेहाउसद्धा संवेगउज्जमारंभ अज्जकालिय साहुजणं अणुग्वेत्तुकामेण विच्छिन्न कम्मपयडिमहागंत्थत्थ संबोहणत्थं आरद्धं आयरिएणं तग्गुणणामगं कम्मपयडीसंगहणी णाम पगरणं । ( कम्मपयडी पत्र १ )
अर्थात् दुःषमा कालके प्रभावसे जिनकी बुद्धि, श्रद्धा, संवेग और उद्यम दिन पर दिन क्षीण हो रहा है, ऐसे अद्य ( वर्तमान ) कालिक साधुजनोंके अनुग्रहके लिए विच्छिन्न हुए महाकम्मपयडिपाहुडके ग्रन्थार्थ के सम्बोधनार्थ आचार्यनें उसी गुण और नामवाले इस कर्मप्रकृतिसंग्रहणी नामक प्रकरण को रचा ।
इस उद्धरणमें तीन महत्त्वपूर्ण बाते उल्लिखित हैं- पहली तो यह कि इसके विषयका सम्बन्ध उस महाकम्मपयडिपाहुडसे है, जो कि षट्खण्डागमका भी उद्गम आधार है । दूसरी बात यह कि प्रकृत कम्मपयडीके रचने के समय वह महाकम्मपयडिपाहुड विच्छिन्न हो गया था । तीसरी बात यह कि इसका पूरा नाम ' कम्मपयडिसंगहणी ' है । ' कम्मपयडी' पदके पीछे लगा हुआ ' संगहणी ' पद स्पष्टरूपसे बता रहा है कि उस विच्छिन्न हुए महाकम्मपयडिपाहुडका जो कुछ भी बिखरा हुआ
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