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Goaपमाणागमे गदिमग्गणा
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सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि सामान्य देवोंका द्रव्यप्रमाण ओघप्ररूपणाके समान पल्योपमके असंख्यातवें भाग है ॥ ५६ ॥
१, २, ६५ ]
भवणवासि देवेसु मिच्छाइट्ठी दव्वपमाणेण केवडिया ? असंखेज्जा ॥ ५७ ॥ भवनवासी देवोंमें मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं : असंख्यात हैं ॥५७॥ असंखेज्जासंखेज्जाहि ओसप्पिणि उस्सप्पिणीहि अवहिरंति कालेण ।। ५८ ।। कालकी अपेक्षा भवनवासी मिथ्यादृष्टि देव असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियों द्वारा अपहृत होते हैं ॥ ५८ ॥
खेत्तेण असंखेज्जाओ सेढीओ पदरस्स असंखेज्जदिभागो । तेसिं सेढीणं विक्खंभसूई अंगुलं अंगुलवग्गमूलगुणिदेण ।। ५९ ।।
क्षेत्रकी अपेक्षा भवनवासी मिध्यादृष्टि देव असंख्यात जगश्रेणी प्रमाण हैं जो जगप्रतरके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं । उन असंख्यात जगश्रेणियोंकी विष्कम्भसूची सूच्यंगुलको सूच्यंगुलके प्रथम वर्गमूलसे गुणित करनेपर जो लब्ध हो उतनी है ॥ ५९ ॥
सासणसम्माइट्ठि-सम्मामिच्छाइट्ठि-असंजद सम्माइट्ठिपरूवणा ओघं ॥ ६० ॥
सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि भवनवासी देवोंकी प्ररूपणा सामान्य प्ररूपणाके समान है ॥ ६० ॥
वाणवैतरदेवेसु मिच्छाइट्ठी दव्वपमाणेण केवडिया ? असंखेज्जा ।। ६१ ॥ वानव्यन्तर देवोंमें मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? असंख्यात हैं ॥ ६१ ॥ असंखेज्जासंखेज्जाहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहि अवहिरंति कालेण ।। ६२ ।। कालकी अपेक्षा वानव्यन्तर देव असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियोंके द्वारा अपहृत होते हैं ॥ ६२ ॥
खेत्तेण पदरस्स संखेज्जजोयणसदवग्गपडिभाएण ।। ६३ ।।
क्षेत्रकी अपेक्षा जगप्रतरके संख्यात सौ योजनोंके वर्गरूप प्रतिभागसे वानव्यन्तर मिथ्यादृष्टि राशि आती है ॥ ६३ ॥
अभिप्राय यह है कि संख्यात सौ योजनोंके वर्गरूप भागहारका जगप्रतर में भाग देने पर जो लब्ध आवे उतने वानव्यन्तर मिथ्यादृष्टि देव हैं ।
सास सम्माइट्ठी सम्मामिच्छाइट्ठी असंजद सम्माइट्ठी ओघं ॥ ६४ ॥ सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि वानव्यन्तर देव सामान्य प्ररूपणाके समान पल्योपमके असंख्यातवें भाग हैं ॥ ६४ ॥
जोइसियदेवा देवगणं भंगो ॥ ६५ ॥
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