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७४ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, २, १०७ असंखेज्जासंखेज्जाहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहि अवहिरंति कालेण ॥१०७ ॥
कालकी अपेक्षा वचनयोगी और अनुभयवचनयोगी मिथ्यादृष्टि जीव असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियोंके द्वारा अपहृत होते हैं ॥ १०७ ॥
खेत्तेण वचिजोगि-असच्चमोसवचिजोगीसु मिच्छाइट्ठीहि पदरमवहिरदि अंगुलस्स संखेज्जदिभागवग्गपडि भागेण ।। १०८ ॥
क्षेत्रकी अपेक्षा वचनयोगियों और अनुभयवचनयोगियोंमें मिथ्यादृष्टि जीवोंके द्वारा अंगुलके संख्यातवें भागके वर्गरूप प्रतिभागसे जगप्रतर अपहृत होता है ॥ १०८ ॥
सेसाणं मणजोगिभंगो ॥ १०९॥
सासादनसम्यग्दृष्टि आदि शेष गुणस्थानवर्ती वचनयोगी और अनुभयवचनयोगी सासादनसम्यग्दृष्टि आदि जीव मनोयोगिराशिके समान हैं ॥ १०९ ॥
कायजोगि-ओरालियकायजोगीसु मिच्छाइट्ठी मूलोघं ॥ ११० ।। काययोगियों और औदारिककाययोगियोंमें मिथ्यादृष्टि जीव सामान्य प्ररूपणाके समान हैं।
अभिप्राय यह है कि ये दोनों ही राशियां अनन्त हैं । कालकी अपेक्षा काययोगी और औदारिककाययोगी मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तानन्त अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियोंके द्वारा अपहृत नहीं होते हैं । क्षेत्रकी अपेक्षा वे अनन्तानन्त लोकप्रमाण हैं ।
सासणसम्माइट्टिप्पहुडि जाव सजोगिकेवलि त्ति जहा मणजोगिभंगो ॥१११॥
सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर सयोगिकेवली गुणस्थान तक काययोगी और औदारिककाययोगी मिथ्यादृष्टि जीव मनोयोगियोंके समान हैं ॥ १११ ॥
ओरालियमिस्सकायजोगीसु मिच्छाइट्ठी मूलोघं ॥ ११२ ॥ औदारिकमिश्रकाययोगियोंमें मिथ्यादृष्टि जीव मूल ओघप्ररूपणाके समान हैं ॥ ११२ ॥ सासणसम्माइट्ठी ओघं ।। ११३ ॥ औदारिकमिश्रकाययोगी सासादनसम्यग्दृष्टि जीव सामान्य प्ररूपणाके समान हैं ॥११३॥ असंजदसम्माइट्ठी सजोगिकेवली दव्वपमाणेण केवडिया ? संखेज्जा ॥ ११४ ।।
असंयतसम्यग्दृष्टि और सयोगिकेवली औदारिकमिश्रकाययोगी जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? संख्यात हैं ॥ ११४ ॥
वेउव्वियकायजोगीसु मिच्छाइट्ठी दव्यपमाणेण केवडिया ? देवाणं संखेज्जदिभागूणो ॥ ११५ ।।
वैक्रियिककाययोगियोंमें मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? देवोंके संख्यातवें भागसे कम हैं ॥ ११५॥
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