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१, २, १०६] दव्वपमाणाणुगमे जोगमग्गणा
[७३ हैं ? असंख्यात हैं ॥ ९८ ॥
असंखेज्जासंखेज्जाहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहि अवहिरंति कालेण ॥ ९९ ॥
कालकी अपेक्षा त्रसकायिक और त्रसकायिक पर्याप्त मिथ्यादृष्टि जीव असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियोंके द्वारा अपहृत होते हैं ॥ ९९ ॥
खेत्तेण तसकाइय-तसकाइयपज्जत्तएसु मिच्छाइट्ठीहि पदरमवहिरदि अंगुलस्स असंखेज्जदिभागवग्गपडि भागेण अंगुलस्स संखेज्जदिभागवग्गपडिभाएण ॥ १०० ॥
क्षेत्रकी अपेक्षा त्रसकायिकोंमें मिथ्यादृष्टि जीवोंके द्वारा सूच्यंगुलके असंख्यातवें भागके वर्गरूप प्रतिभागसे, और त्रसकायिक पर्याप्तोंमें मिथ्यादृष्टि जीवोंके द्वारा सूच्यंगुलके संख्यातवें भागके वर्गरूप प्रतिभागसे जगप्रतर अपहृत होता है ॥ १०० ।।
सासणसम्माइटिप्पहुडि जाव अजोगिकेवलि त्ति ओघं ॥ १०१ ।।
सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर अयोगिकेवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती त्रसकायिक और त्रसकायिक पर्याप्त जीव सामान्य प्ररूपणाके समान है ॥ १०१ ॥
तसकाइयअपज्जत्ता पंचिंदियअपज्जत्ताण भंगो ॥ १०२ ।। त्रसकायिक लब्ध्यपर्याप्त जीवोंका प्रमाण पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकोंके प्रमाणके समान है ।। अब योगमार्गणाकी अपेक्षा जीवोंकी संख्याका निरूपण करते हैं
जोगाणुवादेण पंचमणजोगि-तिण्णिवचिजोगीसु मिच्छाइट्ठी दव्वपमाणेण केवडिया ? देवाणं संखज्जदिभागो ॥
योगमार्गणाके अनुवादसे पांचों मनोयोगियों और तीन बचनयोगियोंमें मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? देवोंके संख्यातवें भाग हैं ॥ १०३ ॥ .
सासणसम्मादिटिप्पहुडि जाव संजदासजदा त्ति ओघं ।। १०४ ॥
सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर संयतासंयत गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती पूर्वोक्त आठ योगवाले जीवोंका प्रमाण सामान्य प्ररूपणाके समान पल्योपमके असंख्यातवें भाग है ॥
पमत्तसंजदप्पहुडि जाव सजोगिकेवलि त्ति दव्वपमाणेण केवडिया ? संखेज्जा।
प्रमत्तसंयत गुणस्थानसे लेकर सयोगिकेवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानमें पूर्वोक्त आठ जीवराशियां द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितनी हैं ? संख्यात हैं । १०५॥
वचिजोगि-असच्चमोसवचिजोगीसु मिच्छाइट्ठी दवपमाणेण केवडिया ? असंखेज्जा ।। १०६॥
वचनयोगियों और असत्यमृषा अर्थात् अनुभय वचनयोगियोंमें मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? असंख्यात हैं ॥ १०६ ॥
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