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१, १,२३.]
संतपरूवणाए ओघणिद्देसो
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केवल पदसे यहांपर केवलज्ञानका ग्रहण किया है। जिसमें इन्द्रिय, आलोक और मनकी अपेक्षा नहीं होती है उसे केवल ( असहाय ) कहते हैं। वह केवलज्ञान जिस जीवको होता है उसे केवली कहते हैं, जो योगके साथ रहते हैं उन्हें सयोग कहते हैं, इस प्रकार जो सयोग होते हुए केवली हैं उन्हें सयोगकेवली जानना चाहिये ।
इस सूत्रमें जो सयोग पदका ग्रहण किया है वह अन्तदीपक होनेसे नीचेके सर्व गुणस्थानोंको सयोगी बतलाता है। चारों घातिकर्मोका क्षय कर देनेसे और वेदनीय कर्मको शक्तिहीन कर देनेसे, अथवा आठों ही कर्मोकी अवयवभूत साठ उत्तर कर्मप्रकृतियोंको (घातिया कर्मोंकी सैंतालीस और नामकर्मकी तेरह ) नष्ट कर देनेसे इस गुणस्थानमें क्षायिक भाव होता है ।
अब अन्तिम गुणस्थानका निरूपण करनेके लिये उत्तर सूत्र कहते हैं-... अजोगकेवली ।। २२ ॥ सामान्यसे अयोगकेवली जीव हैं ॥२२॥
जिसके योग विद्यमान नहीं है उसे अयोग तथा जिसके केवलज्ञान है उसे केवली कहते हैं। जो योगरहित होते हुए केवली है उसे अयोगकेवली कहते हैं। संपूर्ण घातिया कर्मोके क्षीण होने तथा अघातिया कोंके नाशोन्मुख होनेसे इस गुणस्थानमें क्षायिक भाव रहता है।
अभिप्राय यह कि जो अठारह हजार शीलके भेदोंके खामी होकर मेरु समान निष्कंप अवस्थाको प्राप्त हो चुके हैं, जिन्होंने संपूर्ण आस्रवका निरोध कर दिया है, जो नूतन बंधनेवाले कर्मरजसे रहित हैं; और जो मन, वचन तथा काययोगसे रहित होते हुए केवलज्ञानसे विभूषित हैं उन्हें अयोगकेवली परमात्मा समझना चाहिये ।
___ इस प्रकार मोक्षके कारणीभूत चौदह गुणस्थानोंका प्रतिपादन करके अब सिद्धोंका प्रतिपादन करनेके लिये उत्तर सूत्र कहते हैं
सिद्धा चेदि ।। २३ ।। सामान्यसे सिद्ध जीव हैं ॥ २३ ॥
सिद्ध, निष्ठित, निष्पन्न, कृतकृत्य और सिद्धसाध्य; ये एकार्थवाची नाम हैं। जिन्होंने समस्त कर्मोका निराकरण करके बाह्य पदार्थ निरपेक्ष अनन्त, अनुपम, स्वाभाविक और निर्बाध सुखको प्राप्त कर लिया है; जो निर्लेप हैं, निश्चल स्वरूपको प्राप्त हैं, संपूर्ण अवगुणोंसे रहित हैं, सर्व गुणोंके निधान हैं, जिनकी आत्माका आकार अन्तिम शरीरसे कुछ न्यून है, जो कोशसे निकलते हुए बाणके समान निःसंग हैं, और जो लोकके अग्रभागमें निवास करते हैं; उन्हें सिद्ध कहते हैं ।
चौदह गुणस्थानोंका सामान्य प्ररूपण करके अब उनके विशेष प्ररूपणके लिये उत्तर सूत्र कहते हैं
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