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१, २, २७ ]
दव्वपमाणाणुगमे गदिमग्गणा
खेत्तेण सेढीए असंखेज्जदिभागो। तिस्से सेढीए आयामो असंखेज्जाओ जोयणकोडीओ पढमादियाणं सेढिवग्गमूलाणं संखेज्जाणं अण्णोण्णब्भासेण ॥ २२ ॥
क्षेत्रकी अपेक्षा द्वितीयादि छहों पृथिवियोंमें प्रत्येक पृथिवीके नारक मिथ्यादृष्टि जीव जगश्रेणीके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं । उस जगश्रेणीके असंख्यातवें भागकी जो श्रेणी है उसका आयाम असंख्यात कोटि योजन है, जिस असंख्यात कोटि योजनका प्रमाण जगश्रेणीके संख्यात प्रथमादि वर्गमूलोंके परस्पर गुणा करनेसे जितना प्रमाण उत्पन्न हो उतना है ॥ २२ ॥
अब द्वितीयादि शेष पृथिवियोंके सासादनादि गुणस्थानवी जीवोंके द्रव्यप्रमाणका निरूपण करनेके लिये उत्तरसूत्र कहते हैं
सासणसम्माइटिप्पहुडि जाव असंजदसम्माइहि त्ति ओघ ॥ २३ ॥
सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती उक्त द्वितीयादि छह पृथिवियोंमेंसे प्रत्येक पृथिवीके नारकी जीव सामान्य प्ररूपणाके समान पल्योपमके असंख्यातवें भाग हैं ।। २३ ॥
अब तिर्यंचगतिमें तिर्यंच मिथ्यादृष्टि आदि जीवोंकी प्ररूपणा करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं
तिरिक्खगईए तिरिक्खेसु मिच्छाइहिप्पहुडि जाव संजदासंजदा त्ति ओघं ॥२४॥
तिर्यंचगतिकी अपेक्षा तिर्यंचोंमें मिथ्यादृष्टिसे लेकर संयतासंयत गुणस्थान तक तिर्यच सामान्य प्ररूपणाके समान हैं ॥ २४ ॥
अब पंचेन्द्रिय तिर्यंच मिथ्यादृष्टियोंके द्रव्यप्रमाणका निरूपण करनेके लिये उत्तरसूत्र कहते हैं
पंचिदिय-तिरिक्खमिच्छाइट्ठी दवपमाणेण केवडिया ? असंखेज्जा ॥ २५ ॥ पंचेन्द्रिय तिर्यंच मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? असंख्यात हैं ॥२५॥ अब कालकी अपेक्षा उन्हींके प्रमाणका निरूपण करते हैंअसंखेज्जासंखेजाहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहि अवहिरंति कालेण ॥ २६ ॥
कालकी अपेक्षा पंचेन्द्रिय तिर्यंच मिथ्यादृष्टि जीव असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियोंके द्वारा अपहृत होते हैं ॥२६॥
अभिप्राय यह है कि जितने असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियोंके समय हैं उनकी अपेक्षा पंचेन्द्रिय तिर्यंच मिथ्यादृष्टि जीव अधिक हैं ।
अब क्षेत्रकी अपेक्षा पंचेन्द्रिय तिर्यंच मिथ्यादृष्टि जीवोंके प्रमाणका निरूपण करते हैंखेत्तेण पंचिंदिय-तिरिक्ख-मिच्छाइट्ठीहि पदरमवहिरदि देवअवहारकालादो
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