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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, २, २७
असंखेज्जगुणहीणकालेण ॥ २७ ॥
क्षेत्रकी अपेक्षा पंचेन्द्रिय मिथ्यादृष्टि तिर्यंचोंके द्वारा देवोंके अवहारकालसे असंख्यातगुणे हीन कालके द्वारा जगप्रतर अपहृत होता है ।। २७ ॥
दो सौ छप्पन सूच्यंगुलोंके वर्गको आवलीके असंख्यातवें भागसे भाजित करनेपर पंचेन्द्रिय तिर्यंच मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल होता है । इस अवहारकालका जगप्रतरमें भाग देनेपर पंचेन्द्रिय तिर्यंच मिथ्यादृष्टियोंका द्रव्यप्रमाण प्राप्त होता है। अब क्षेत्रकी अपेक्षा पंचेन्द्रिय तिर्यंच सासादनसम्यग्दृष्टि आदि जीवोंके प्रमाणकी प्ररूपणा करते हैं--
सासणम्माइटिप्पहुडि जाव संजदासजदा ति तिरिक्खोघं ॥२८॥
सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर संयतासंयत गुणस्थान तक पंचेन्द्रिय तिर्यंच प्रत्येक गुणस्थानमें सामान्य तिर्यंचोंके समान पल्योपमके असंख्यातवें भाग हैं ॥ २८ ॥
अब पंचेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्त मिथ्यादृष्टि जीवोंके द्रव्यप्रमाणका निरूपण करते हैंपंचिंदिय-तिरिक्खपज्जत्त-मिच्छाइट्ठी दव्यपमाणेण केवडिया? असंखेज्जा ॥२९ पंचेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्त मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? असंख्यात हैं। अब कालकी अपेक्षा उपर्युक्त जीवोंके प्रमाणका निरूपण करते हैं-- असंखेज्जासंखेज्जाहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहि अवहिरंति कालेण ॥ ३०॥
कालकी अपेक्षा पंचेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्त मिथ्यादृष्टि जीव असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियोंके द्वारा अपहृत होते हैं ॥ ३० ॥
अब क्षेत्रकी अपेक्षा उन्हीं जीवोंके प्रमाणका वर्णन करते हैं
खेत्तेण पंचिंदिय-तिरिक्खपज्जत्त-मिच्छाइट्ठीहि पदरमवहिरदि देवअवहारकालादो संखेज्जगुणहीणेण कालेण ॥ ३१ ॥
क्षेत्रकी अपेक्षा पंचेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्त मिथ्यादृष्टियों द्वारा देवअवहारकालसे संख्यातगुणे हीन कालके द्वारा जगप्रतर अपहृत होता है ।। ३१ ॥
अब क्षेत्रकी अपेक्षा पंचेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्त सासादनसम्यग्दृष्टि आदि जीवोंके प्रमाणकी प्ररूपणा की जाती है
सासणसम्माइटिप्पहुडि जाव संजदासजदा त्ति ओघं ॥ ३२ ॥
सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर संयतासंयत गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती पंचेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्त जीव ओघप्ररूपणाके समान पत्योपमके असंख्यातवें भाग हैं ॥ ३२ ॥
अब आगे तीन सूत्रोंके द्वारा पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती जीवोंका द्रव्य, काल और क्षेत्रकी अपेक्षा प्रमाण बतलाते हैं
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