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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, २, १७ खेत्तेण असंखेज्जाओ सेढीओ जगपदरस्स असंखेज्जदिभागमेत्ताओ । तासि सेढीणं विक्खंभसूची अंगुलवग्गमूलं विदियवग्गमूलगुणिदेण ॥ १७॥
क्षेत्रकी अपेक्षा सामान्य नारक मिथ्यादृष्टि जीवराशि जगप्रतरके असंख्यातवें भाग मात्र असंख्यात जगश्रेणी प्रमाण है । उन जगश्रेणियोंकी विष्कम्भसूची सूच्यंगुलके प्रथम वर्गमूलको उसीके द्वितीय वर्गमूलसे गुणित करनेपर जो लब्ध हो उतनी है ॥ १७ ॥
__ अब नारक सासादनसम्यग्दृष्टि आदि जीवोंका प्रमाण बतलानेके लिये उत्तरसूत्र . कहते हैं--
सासणसम्माइहिप्पहुडि जाव असंजदसम्माइहि त्ति दव्वपमाणेण केवडिया ? ओघं ।। १८ ॥
सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती नारकी जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? वे ओघ अर्थात् गुणस्थानप्ररूपणाके समान पत्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र हैं ॥ १८ ॥
अब प्रथम पृथिवीस्थ नारकी जीवोंका प्रमाण बतलानेके लिये आगेका सूत्र कहते हैंएवं पढमाए पुढवीए णेरइया ॥ १९ ॥
उक्त सामान्य नारकियोंके द्रव्यप्रमाणके समान पहली पृथिवीके नारकियोंका द्रव्यप्रमाण जानना चाहिये ॥ १९ ॥
अब आगे द्वितीयादि शेष पृथिवियोंके नारकी जीवोंका प्रमाण कहा जाता है
विदियादि जाव सत्तमाए पुढवीए णेरइएसु मिच्छाइट्ठी दबपमाणेण केवडिया? असंखेज्जा ।। २० ॥
दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक नारकियोंमें मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? असंख्यात हैं ॥ २० ॥
अब उक्त नारकियोंका कालकी अपेक्षासे प्रमाण बतलाया जाता हैअसंखेज्जासंखेज्जाहि ओसप्पिणि-उस्सप्पणीहि अवहिरंति कालेण ॥ २१ ॥
कालप्रमाणकी अपेक्षा दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक प्रत्येक पृथिवीके नारक मिथ्यादृष्टि जीव असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियोंके द्वारा अपहृत होते हैं ॥२१॥
इस सूत्रका अभिप्राय सामान्य नारक मिथ्यादृष्टि जीवोंके द्रव्यप्रमाणकी प्ररूपणा करनेवाले सूत्रके समान समझना चाहिये ।
अब द्रव्य और काल इन दोनों ही प्रमाणोंसे सूक्ष्म क्षेत्रप्रमाणकी प्ररूपणा करनेके लिये उत्तरसूत्र कहते हैं
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