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५८] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, २, ११ अब चारों क्षपकोंके तथा अयोगिकेवलीके द्रव्यप्रमाणका निरूपण करनेके लिये दो उत्तरसूत्र प्राप्त होते हैं
___ चउण्हं खवा अजोगिकेवली दव्वपमाणेण केवडिया ? पवेसेण एक्को वा दो वा तिण्णि वा उक्कस्सेण अट्ठोत्तरसदं ॥ ११ ॥
__ चारों गुणस्थानोंके क्षपक और अयोगिकेवली जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने होते हैं ? प्रवेशकी अपेक्षा एक, अथवा दो, अथवा तीन; इस प्रकार उत्कृष्टरूपसे एक सौ आठ होते हैं ॥११॥
आठ समय अधिक छह महिनोंके भीतर क्षपकश्रेणीके योग्य आठ समय होते हैं। उन समयोंके विशेष कथनकी विवक्षा न करके सामान्यरूपसे प्ररूपणा करनेपर जघन्यसे एक जीव क्षपक गुणस्थानको प्राप्त होता है तथा उत्कृष्टरूपसे एक सौ आठ जीव क्षपक गुणस्थानको प्राप्त होते हैं, ऐसा निर्दिष्ट किया गया है । विशेषका आश्रय लेकर प्ररूपणा करनेपर प्रथम समयमें एक जीवको आदि लेकर उत्कृष्टरूपसे बत्तीस जीव क्षपकश्रेणीपर चढ़ते हैं। दूसरे समयमें एक जीवको आदि लेकर उत्कृष्टरूपसे अड़तालीस जीव क्षपकश्रेणीपर चढ़ते हैं। तीसरे समयमें एक जीवको आदि लेकर उत्कृष्टरूपसे साठ जीव क्षपकश्रेणीपर चढ़ते हैं। चौथे समयमें एक जीवको आदि लेकर उत्कृष्टरूपसे बहत्तर जीव क्षपकश्रेणीपर चढ़ते हैं । पांचवें समयमें एक जीवको आदि लेकर उत्कृष्टरूपसे चौरासी जीव क्षपकश्रेणीपर चढ़ते हैं। छठे समयमें एक जीवको आदि लेकर उत्कृष्टरूपसे छ्यानबै जीव क्षपकश्रेणीपर चढ़ते हैं । सातवें और आठवें समयोंमेंसे प्रत्येक समयमें एक जीवको आदि लेकर उत्कृष्टरूपसे एक सौ आठ जीव क्षपकश्रेणीपर चढ़ते हैं ।
अब उन्हींका प्रमाण कालकी अपेक्षा कहा जाता हैअद्धं पडुच्च संखेज्जा ॥ १२ ॥ कालकी अपेक्षा संचित हुए क्षपक जीव संख्यात होते हैं ॥ १२ ॥
पूर्वोक्त आठ समयोंमें संचित हुए सम्पूर्ण जीवोंको एकत्रित करनेपर वे उत्कृष्टरूपसे छह सौ आठ ( ३२+४८+६०+७२+८४+९६+१०८+१०८=६०८) होते हैं।
अब तेरहवें गुणस्थानवर्ती जीवोंके द्रव्यप्रमाणका निरूपण करते हैं
सजोगिकेवली दव्वपमाणेण केवडिया ? पवेसणेण एको वा दो वा तिण्णि वा उक्कस्सेण अद्वत्तरसयं ॥ १३ ॥
सयोगिकवली जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने होते हैं ? प्रवेशकी अपेक्षा एक, अथवा दो, अथवा तीन; इस प्रकार उत्कृष्टरूपसे एक सौ आठ होते हैं ॥ १३ ॥
अब इन्हींका संचयकी अपेक्षा प्रमाण कहा जाता हैअद्धं पडुच्च सदसहस्सपुधत्तं ॥ १४ ॥
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