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५६] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, २, ७ आदि उपर्युक्त चार गुणस्थानवी जीवों से प्रत्येक गुणस्थानवर्ती जीवोंका प्रमाण होता है।
उदाहरणके रूपमें कल्पना कीजिये कि सासादनसम्यग्दृष्टि आदि चार गुणस्थानवर्ती जीवराशिका प्रमाण लानेके लिये पल्योपमका प्रमाण ६५५३६ और अवहारकालका प्रमाण ३२ है । इस प्रकार उस अवहारकालस्वरूप ३२ का पल्योपमप्रमाणस्वरूप ६५५३६ में भाग देनेपर सासादनसम्यग्दृष्टि आदि उन चार जीवराशियोंका प्रमाण २०४८ आता है जो पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र है । यह अंकसंदृष्टिकी अपेक्षा एक उदाहरण दिया गया है । यथार्थ प्ररूपणा भी इसी प्रकार . जान लेना चाहिये । इस उदाहरणमें यद्यपि उन चारों जीवराशियोंका प्रमाण समान (२०४८) दिखता है फिर भी अवहारकालभूत अन्तर्मुहूर्तके अनेक भेद होनेसे उन जीवराशियोंमें अर्थसंदृष्टिकी अपेक्षा हीनाधिकता समझना चाहिये । कारण यह कि उक्त सासादनसम्यग्दृष्टि आदि जीवराशियोंका प्रमाण बतलानेके लिये जो भागहरका प्रमाण अन्तर्मुहूर्त कहा है वह अन्तर्मुहूर्त अनेक प्रकारका है। यथा---
___ एक परमाणु मन्दगतिसे जितने कालमें दूसरे परमाणुको स्पर्श करता है उसका नाम समय है । असंख्यात समयोंकी एक आवली होती है। संख्यात आवलियोंके समूहको एक उच्छ्वास कहते हैं । सात उच्छ्वासोंका एक स्तोक होता है । सात स्तोकोंका एक लव होता है । साढ़े अड़तीस लवोंकी एक नाली होती है । दो नालियोंका एक मुहूर्त होता है । आवलीके ऊपर एक समय, दो समय व तीन समय आदिके क्रमसे एक समय कम इस मुहूर्त प्रमाण काल तक उत्तरोत्तर वृद्धिको प्राप्त होनेवाले सब ही कालभेद अन्तर्मुहूर्तके अन्तर्गत होते हैं । इस प्रकार अवहारभूत अन्तर्मुहूर्तके अनेक भेदरूप होनेसे सासादनसम्यग्दृष्टि सम्बन्धी अवहारकालका प्रमाण ३२,सम्यग्मिथ्यादृष्टि सम्बन्धी अवहारकालका प्रमाण १६, असंयतसम्यग्दृष्टि सम्बन्धी अवहारकालका प्रमाण ४ और संयतासंयत सम्बन्धी अवहारकालका प्रमाण १२८ माना जा सकता है । तदनुसार उक्त भागहारोंका इस पल्योपमके प्रमाणभूत ६५५३६ में भाग देनेपर सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशिका प्रमाण २०४८, सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवराशिका प्रमाण ४०९६, असंयतसम्यग्दृष्टि सम्बन्धी जीवराशिका प्रमाण १६३८४ और संयतासंयत जीवराशिका प्रमाण ५१२ आता है।
अब प्रमत्तसंयतोंके द्रव्यप्रमाणका निरूपण करनेके लिये उत्तरसूत्र कहते हैं-- पमत्तसंजदा दयपमाणेण केवडिया ? कोडिपुत् ॥ ७॥ प्रमत्तसंयत जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? कोटिपृथक्त्व प्रमाण हैं ॥ ७ ॥
पृथक्त्वसे यहां तीन (३) संख्यासे ऊपर और नौ (९) संख्यासे नीचेकी संख्याको ग्रहण करना चाहिये । परमगुरुके उपदेशानुसार यह प्रमत्तसंयत जीवोंका प्रमाण पांच करोड़ तेरानबै लाख अट्ठानबै हजार दो सौ छह ५९३९८२०६ है।
अब अप्रमत्तसंयतोंके द्रव्यप्रमाणका निरूपण करने के लिये उत्तरसूत्र कहते हैं
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