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१, २, ६ ]
दव्वपमाणागमे ओघणिसो
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प्ररूपणा की गई है । उपर्युक्त सूत्रका अभिप्राय यह है कि एक ओर अनन्तानन्त अवसर्पिणी और उत्सर्पिणियोंके समयोंकी राशिको तथा दूसरी ओर समस्त मिथ्यादृष्टि जीवोंकी राशिको स्थापित करके उन समयोंमेंसे एक समयको तथा मिथ्यादृष्टियोंकी राशिमेंसे एक मिथ्यादृष्टि जीवको कम करना चाहिये । इस प्रकार उत्तरोत्तर करते जानेपर कालके समस्त समय तो समाप्त हो जाते हैं, किन्तु मिथ्यादृष्टि जीवराशि समाप्त नहीं होती है । तात्पर्य यह है कि जितने अतीत कालके समय हैं उनकी अपेक्षा भी मिथ्यादृष्टि जीव अधिक हैं ।
खेत्तेण अनंताणंता लोगा ॥ ४ ॥
क्षेत्रकी अपेक्षा मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तानन्त लोक प्रमाण हैं ॥ ४ ॥
लोकमें जिस प्रकार प्रस्थ ( एक प्रकारका माप ) आदिके द्वारा गेहूं व चावल आदि म जाते हैं उसी प्रकार बुद्धिसे लोकके द्वारा मिथ्यादृष्टि जीवराशिको मापनेपर वह अनन्त लोकोंके बराबर होती है । अभिप्राय यह है कि लोकके एक एक प्रदेशपर एक एक मिथ्यादृष्टि जीवको रखनेपर एक लोक होता है । इस प्रकारसे उत्तरोत्तर मापनेपर वह मिथ्यादृष्टि जीवराशि अनन्त लोकोंके बराबर होती है । लोकसे अभिप्राय यहां जगश्रेणीके घनका है । यह जगश्रेणी सात राजुप्रमाण आकाशके प्रदेशोंकी लंबाईके बराबर है । तिर्यग्लोक ( मध्यलोक ) का जितना मध्यम विस्तार है उतना प्रमाण यहां राजुका समझना चाहिये ।
अब भावप्रमाणकी अपेक्षा मिध्यादृष्टि जीवोंके प्रमाणका निरूपण करते हैं
तिहं पि अधिगमो भावपमाणं ॥ ५ ॥
पूर्वोक्त तीनों प्रमाणोंका ज्ञान ही भावप्रमाण है ॥ ५ ॥
अभिप्राय यह है कि मतिज्ञानादिरूप पांचों ज्ञानोंमेंसे प्रत्येक ज्ञान द्रव्य, क्षेत्र और कालके . भेदसे तीन तीन प्रकारका है । उन तीनोंमेंसे द्रव्योंके अस्तित्व विषयक ज्ञानको द्रव्यभावप्रमाण, क्षेत्रविशिष्ट द्रव्यके ज्ञानको क्षेत्रभावप्रमाण और कालविशिष्ट द्रव्यके ज्ञानको कालभावप्रमाण समझना चाहिये ।
अब सासादन से लेकर संयतासंयत गुणस्थान तकके जीवोंके द्रव्यप्रमाणका निरूपण करने के लिये उत्तरसूत्र कहते हैं
सास सम्माद्विपहुड जाव संजदासंजदा ति दव्यपमाणेण केवडिया ? पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो । एदेहि पलिदोवममवहिरिज्जदि अंतोमुहुत्तेण || ६ ||
सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर संयतासंयत गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? वे पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र हैं । उनके द्वारा अन्तर्मुहूर्तसे पल्योपम अपहृत होता है ॥ ६ ॥
अभिप्राय यह है कि पल्योपममें अन्तर्मुहूर्तका भाग देनेपर जो लब्ध हो उतना सासादन
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