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१, २, ४०] दव्वपमाणाणुगमे गदिमग्गणा
[६३ पंचिंदिय-तिरिक्ख-जोणिणीसु मिच्छाइट्ठी दव्वपमाणेण कवडिया असंखेज्जा।
पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमतियोंमें मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? असंख्यात हैं ॥ ३३ ॥
असंखेज्जासंखेज्जाहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहि अवहिरंति कालेण ॥ ३४॥
कालकी अपेक्षा पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती मिथ्यादृष्टि जीव असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियोंके द्वारा अपहृत होते हैं ॥ ३४ ॥
___ खेत्तेण पंचिंदिय-तिरिक्ख-जोणिणि-मिच्छाइट्ठीहि पदरमवहिरदि देवअवहारकालादो संखेज्जगुणेण कालेण ॥ ३५ ॥
क्षेत्रकी अपेक्षा पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती मिथ्यादृष्टियोंके द्वारा देवोंके अवहारकालकी अपेक्षा संख्यातगुणे अवहारकालसे जगप्रतर अपहृत होता है ॥ ३५ ॥
अब पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती सासादनसम्यग्दृष्टि आदि जीवोंके प्रमाणकी प्ररूपणा की जाती है
सासणसम्माइहिप्पहुडि जाव संजदासंजदा त्ति ओघ ॥ ३६॥
सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर संयतासंयत गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानमें पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती जीव सामान्य तिर्यंच जीवोंके समान पल्योपमके असंख्यातवें भाग हैं।
आगे तीन सूत्रोंमें पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्तकोंके प्रमाणका द्रव्य, काल और क्षेत्रकी अपेक्षा निरूपण करते हैं
पंचिंदिय-तिरिक्ख-अपज्जत्ता दव्वपमाणेण केवडिया ? असंखेज्जा ॥३७॥ पंचेद्रिय तिर्यंच अपर्याप्त जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? असंख्यात हैं ॥३७ ॥ असंखेज्जासंखेज्जाहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहि अवहिरंति कालेण ॥ ३८ ॥
कालकी अपेक्षा उक्त पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्त जीव असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियोंके द्वारा अपहृत होते हैं ॥ ३८ ॥
खेत्तेण पंचिंदिय-तिरिक्ख-अपज्जत्तेहि पदरमवहिरदि देवअवहारकालादो असंखेज्जगुणहीणेण कालेण ॥ ३९ ॥
क्षेत्रकी अपेक्षा उक्त पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्तोंके द्वारा देवोंके अवहारकालसे असंख्यातगुणे हीन अवहारकालसे जगप्रतर अपहृत होता है ॥ ३९ ॥
__ आगे तीन सूत्रों द्वारा द्रव्य, काल और क्षेत्रकी अपेक्षा मिथ्यादृष्टि मनुष्योंके प्रमाणका निरूपण करते हैं
मणुसगईए मणुस्सेसु मिच्छाइट्ठी दबपमाणेण केवडिया? असंखेज्जा ॥ ४० ॥
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