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छक्खंडाग
[ १,२, ४१
मनुष्यगतिप्रतिपन्न मनुष्यों में मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? असंख्यात हैं । असंखेज्जासंखेज्जाहि ओसप्पिणि उस्सप्पिणीहि अवहिरंति कालेण ॥ ४१ ॥
कालकी अपेक्षा मनुष्य मिथ्यादृष्टि जीव असंख्याता संख्यात अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियोंके द्वारा अपहृत होते हैं ॥ ४१ ॥
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खेत्तेण सेढीए असंखेज्जदिभगो । तिस्से सेढीए आयामो असंखेजजोयणकोडीओ । मणुसमिच्छारट्ठीहि रूवा पक्खित्तएहि सेढी अवहिरदि अंगुलवग्गमूलं तदियवग्गमूलगुणिदेण ॥ ४२ ॥
क्षेत्रकी अपेक्षा मनुष्य मिथ्यादृष्टि जीवराशि जगश्रेणीके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । उस श्रेणीका आयाम असंख्यात करोड़ योजन है। सूच्यंगुलके प्रथम वर्गमूलको उसीके तृतीय वर्गमूलसे गुणित करनेपर जो लब्ध आवे उसे शलाकारूपसे स्थापित करके रूपाधिक अर्थात् एकाधिक तेरह गुणस्थानवर्ती जीवराशिसे अधिक मनुष्य मिथ्यादृष्टि राशिके द्वारा जगश्रेणी अपहृत होती है ॥ ४२ ॥ अब शेष गुणस्थानवर्ती मनुष्योंके प्रमाणका निरूपण करनेके लिये आगे के दो सूत्र प्राप्त
होते हैं
सास सम्मापि हुडि जाव संजदासंजदा त्ति दव्वपमाणेण केवडिया ? संखेज्जा ।। सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर संयतासंयत गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती मनुष्य द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? संख्यात हैं ॥ ४३ ॥
सासादनसम्यग्दृष्टिसे प्रारम्भ करके संयतासंयत गुणस्थान तक इन चार गुणस्थानों में प्रत्येक गुणस्थानवर्ती मनुष्यराशि संख्यात ही होती है, यह इस सूत्रका अभिप्राय है । सासादनसम्यग्दृष्टि आदि चार गुणस्थानोमेंसे प्रत्येक गुणस्थानवर्ती मनुष्यराशि संख्यात है, ऐसा सामान्यरूपसे कथन करनेपर भी उनका प्रमाण विशेषरूपसे इस प्रकार है- सासादनसम्यग्दृष्टि मनुष्य बावन करोड़ (५२0000000 ) हैं, सम्यग्मिथ्यादृष्टि मनुष्य सासादनसम्यग्दृष्टि मनुष्योंके प्रमाणसे दूने हैं, असंयतसम्यग्दृष्टि सात सौ करोड़ हैं, तथा संयतासंयत तेरह करोड़ हैं । कितने ही आचार्य सासादनसम्यग्दृष्टि मनुष्यों का प्रमाण पचास करोड़ तथा सम्यग्मिथ्यादृष्टि मनुष्यों का प्रमाण उससे दूना बतलाते हैं ।
प्रमत्तसंजद पहुडि जाव अजोगिकेवलि त्ति ओघं ॥ ४४ ॥
प्रमत्तसंयत गुनस्थानसे लेकर अयोगिकेवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती मनुष्य सामान्य प्ररूपणाके समान संख्यात हैं ॥ ४४ ॥
चूंकि प्रमत्तसंयतादि गुणस्थान मनुष्यगतिको छोड़कर अन्य किसी भी गतिमें सम्भव नहीं हैं, अतएव मनुष्यों में प्रमत्तसंयतादि जीवोंके प्रमाणकी प्ररूपणा सामान्य प्ररूपणाके ही समान समझना चाहिये |
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