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१, २, १६] दव्वपमाणाणुगमे गदिमग्गणा
[५९ कालकी अपेक्षा सम्पूर्ण सयोगी जिन लक्षपृथक्त्व प्रमाण होते हैं ॥ १४ ॥
उक्त सयोगी जिनोंका प्रमाण कालका आश्रय करके लक्षपृथक्त्व कहा गया है। एक मान्यताके अनुसार उनका प्रमाण ८९८५०२ और दूसरी मान्यताके अनुसार ५२९६४८ है ।
चौदह गुणस्थानोंकी अपेक्षा द्रव्यप्रमाणकी प्ररूपणा करके अब मार्गणाओंकी अपेक्षा नरकगतिमें द्रव्यप्रमाणकी प्ररूपणा की जाती है----
____ आदेसेण गदियाणुवादेण णिरयगईए णेरइएसु मिच्छाइट्ठी दव्यपमाणेण केवडिया ? असंखेज्जा ॥ १५ ॥
आदेशकी अपेक्षा गतिमार्गणाके अनुवादसे नरकगतिगत नारकियोंमें मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? असंख्यात हैं ॥ १५ ॥
नाम, स्थापना, द्रव्य, शाश्वत, गणना, अप्रदेशिक, एक, उभय, विस्तार, सर्व और भावके भेदसे वह असंख्यात ग्यारह प्रकारका है । उनमेंसे यहां गणना-असंख्यातको ग्रहण करना चाहिये । यह गणना-असंख्यात भी तीन प्रकारका है-- परीतासंख्यात, युक्तासंख्यात और असंख्यातासंख्यात । इनमेंसे प्रत्येक भी उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्यके भेदसे तीन तीन प्रकारका है। प्रकृतमें मध्यम असंख्यातासंख्यातको ग्रहण करना चाहिये । कारण यह कि “ जहां जहां असंख्यातासंख्यात देखा जाता है वहां वहां अजघन्यानुत्कृष्ट (मध्यम ) असंख्यातासंख्यातका ही ग्रहण होता है " ऐसा परिकर्मसूत्रमें कहा गया है । इससे यह अभिप्राय हुआ कि नरकगतिमें नारकी मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा मध्यम असंख्यातासंख्यात प्रमाण हैं।
अब कालकी अपेक्षा उपर्युक्त नारकी मिथ्यादृष्टि जीवोंके प्रमाणकी प्ररूपणा की जाती हैअसंखेज्जासंखेज्जाहि ओसप्पिणि-उसप्पिणीहि अवहिरंति कालेण ॥ १६ ॥
कालकी अपेक्षा नारक मिथ्यादृष्टि जीव असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियोंके द्वारा अपहृत हो जाते हैं ॥ १६ ॥
असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियोंके समयोंको शलाकारूपसे एक ओर स्थापित करके और दूसरी ओर नारक मिथ्यादृष्टि जीवराशिको स्थापित करके शलाका राशिमेसे एक समय कम करना चाहिये और नारक मिथ्यादृष्टि जीवराशिमेंसे एक जीवको कम करना चाहिये । इस प्रकार शलाकाराशि और नारक मिथ्यादृष्टि जीवराशिमेंसे पुनः पुनः एक एक कम करनेपर शलाकाराशि और नारक मिथ्यादृष्टि जीवराशि दोनों राशियां एक साथ समाप्त होती हैं । अथवा, अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी ये दोनों मिलकर एक कल्पकाल होता है। उस कल्पकालका नारक मिथ्यादृष्टि जीवराशिमें भाग देनेपर जो लब्ध हो उतने कल्पकाल नारक मिथ्यादृष्टि जीवराशिकी गणनामें पाये जाते हैं।
अब उन्हींके प्रमाणकी प्ररूपणा क्षेत्रकी अपेक्षासे की जाती है
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