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२. दव्वपमाणाणुगमो
अब उक्त चौदह गुणस्थानोंमें जीवोंकी संख्याका प्रतिपादन करनेके लिये उत्तरसूत्र कहते हैं
दव्यपमाणाणुगमेण दुविहो णिद्देसो ओघेण आदेसेण य ॥ १॥
द्रव्यप्रमाणानुगमकी अपेक्षासे निर्देश दो प्रकारका है- ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश ॥ १ ॥
जो पर्यायोंको प्राप्त होता है, प्राप्त होगा और प्राप्त हुआ है उसे द्रव्य कहते हैं । अथवा जिसके द्वारा पर्यायें प्राप्त की जाती हैं, प्राप्त की जावेंगी, और प्राप्त की गई थीं उसे द्रव्य कहते हैं। वह द्रव्य दो प्रकारका है-- जीवद्रव्य और अजीवद्रव्य । जो पांच प्रकारके वर्ण, पांच प्रकारके रस, दो प्रकारके गन्ध और आठ प्रकारके स्पर्शसे रहित; सूक्ष्म और असंख्यातप्रदेशी है तथा जिसका कोई आकार इन्द्रियगोचर नहीं है वह जीव है। यह जीवका साधारण लक्षण है, क्योंकि यह दूसरे धर्मादि अमूर्त द्रव्योमें भी पाया जाता है । ऊर्ध्वगतिखभाव, भोक्तृत्व और स्व-परप्रकाशकत्व यह उक्त जीवका असाधारण लक्षण है; क्योंकि, यह लक्षण जीव द्रव्यको छोड़कर दूसरे किसी भी द्रव्यमें नहीं पाया जाता है।
जिसमें चेतना गुण नहीं पाया जाता है उसे अजीब कहते हैं । वह पांच प्रकारका हैधर्म, अधर्म, आकाश, पुद्गल और काल। सामान्यतया अजीवके रूपी और अरूपी ऐसे दो भेद हैं । उनमें रूप, रस, गन्ध और स्पर्शसे युक्त जो पुद्गल है वह रूपी अजीवद्रव्य है । वह रूपी अजीवद्रव्य पृथिवी, जल व छाया आदिके भेदसे छह प्रकारका है। अरूपी अजीवद्रव्य चार प्रकारका है- धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, आकाशद्रव्य और कालद्रव्य । उनमें जो जीव और पुद्गलोंके गमनागमनमें कारण होता है वह धर्मद्रव्य तथा जो उनकी स्थितिमें कारण होता है वह अधर्मद्रव्य है। ये दोनों द्रव्य अमूर्तिक और असंख्यातप्रदेशी होकर लोकके बराबर हैं। जो सर्वव्यापक होकर अन्य द्रव्योंको स्थान देनेवाला है वह आकाशद्रव्य कहा जाता है । जो अपने और दूसरे द्रव्योंके परिणमनका कारण व एकप्रदेशी है वह कालद्रव्य कहलाता है। लोकाकाशके जितने प्रदेश हैं उतने ही कालाणु हैं। आकाशके दो भेद हैं-- लोकाकाश और अलोकाकाश । जहां अन्य पांच द्रव्य रहते हैं उसे लोकाकाश कहते हैं। और जहां वे पांचों द्रव्य नहीं पाये जाते हैं उसे अलोकाकाश कहते हैं। इन द्रव्योंमें यहां केवल जीव द्रव्यकी ही विवक्षा है, शेष पांच द्रव्योंकी विवक्षा नहीं है।
जिसके द्वारा पदार्थ मापे जाते हैं या गिने जाते हैं वह प्रमाण कहा जाता है । द्रव्यका जो प्रमाण है उसका नाम द्रव्यप्रमाण है। वस्तुके अनुरूप ज्ञानको अनुगम कहते हैं । अथवा,
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