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१, १, ७६ ]
संतपरूवणाए जोगमग्गणा
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__ सब जीवोंके छह ही पर्याप्तियां नहीं होती हैं, किन्तु किन्हींके पांच और किन्हींके चार भी होती हैं, इस बातको बतलानेके लिये आगे चार सूत्र कहे जाते हैं
पंच पज्जत्तीओ, पंच अपज्जत्तीओ ॥ ७२ ॥ पांच पर्याप्तियां और पांच अपर्याप्तियां होती हैं ॥ ७२ ॥
यद्यपि ये पांच पर्याप्तियां उपर्युक्त छहों पर्याप्तियोंके अन्तर्गत हैं, फिर भी किन्हीं जीवविशेषोंमें छहों पर्याप्तियां पाई जाती हैं और किन्हीं जीवोंमें पांच ही पर्याप्तियां पाई जाती हैं। इस विशेषताको दिखलानेके लिये इस पृथक् सूत्रका अवतार हुआ है। यहांपर मनःपर्याप्तिको छोड़कर शेष पांच पर्याप्तियां विवक्षित हैं।
वे पांच पर्याप्तियां और पांच अपर्याप्तियां किनके होती हैं, इस शंकाको दूर करनेके लिये उत्तरसूत्र कहते हैं- .
बीइंदियप्पहुडि जाव असण्णिपंचिदिया ति ।। ७३ ।।।
उपर्युक्त पांच पर्याप्तियां और पांच अपर्याप्तियां द्वीन्द्रिय जीवोंसे लेकर असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्यन्त होती हैं ॥ ७३ ॥
पर्याप्तियोंकी संख्याके अस्तित्वमें और भी विशेषता बतलानेके लिये उत्तरसूत्र कहते हैंचत्तारि पज्जत्तीओ, चत्तारि अपज्जत्तीओ ।। ७४ ॥ चार पर्याप्तियां और चार अपर्याप्तियां होती हैं ॥ ७४ ॥
किन्हीं जीवोंके ये चार ही पर्याप्तियां और अपर्याप्तियां होती हैं- आहारपर्याप्ति, शरीरपर्याप्ति, इन्द्रियपर्याप्ति और आनपानपर्याप्ति । इसी प्रकार चार अपर्याप्तियां भी समझना चाहिये ।
अब उन चार पर्याप्तियों और चार अपर्याप्तियोंके अधिकारी जीवोंके प्रतिपादनार्थ उत्तरसूत्र कहते हैं
एइंदियाणं ॥ ७५ ॥
भाषा और मन पर्याप्ति-अपर्याप्तियोंसे रहित ये चार पर्याप्तियां और चारों अपर्याप्तियां एकेन्द्रिय जीवोंके ही होती हैं । ७५ ।।
इस प्रकार पर्याप्तियों और अपर्याप्तियोंका निरूपण करके अब अमुक जीवमें यह योग होता है और अमुक जीवमें यह योग नहीं होता है, इसका कथन करनेके लिये उत्तरसूत्र कहते हैं
ओरालियकायजोगो पज्जत्ताणं, ओरालियमिस्सकायजोगो अपज्जत्ताणं ।।७६॥ औदारिककाययोग पर्याप्तकोंके और औदारिकमिश्रकाययोग अपर्याप्तकोंके होता है ॥७६॥
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