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३२] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १, ८४ अब तिर्यंचगतिमें गुणस्थानोंके सद्भावका प्रतिपादन करनेके लिये उत्तरसूत्र कहते हैं
तिरिक्खा मिच्छाइट्ठि-सासणसम्माइटि-असंजदसम्माइडिट्ठाणे सिया पज्जत्ता सिया अपज्जत्ता ॥ ८४ ॥
तिर्यंच जीव मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें कदाचित् पर्याप्त भी होते हैं और कदाचित् अपर्याप्त भी होते हैं ॥ ८४ ॥
जिन जीवोंने सम्यग्दर्शन ग्रहण करनेके पहले मिथ्यादृष्टि अवस्थामें तिर्यंचआयुका बन्ध कर लिया है उनकी तो सम्यग्दर्शनके साथ तिर्यंचोंमें उत्पत्ति होती है, किन्तु शेष सम्यग्दृष्टि जीवोंकी वहां उत्पत्ति नहीं होती है । इतना अवश्य है कि जिन जीवोंने सम्यग्दर्शनप्राप्तिके पूर्व में तिर्यंचआयुका बन्ध कर लिया है वे मरकर भोगभूमिज तिर्यंचोंमें ही उत्पन्न होते हैं, न कि कर्मभूमिज तिर्यंचोंमें ।
अब तिर्यंचोंमें सम्यग्मिथ्यादृष्टि आदि गुणस्थानोंके स्वरूपका निरूपण करनेके लिये उत्तरसूत्र कहते हैं
सम्मामिच्छाइद्वि-संजदासंजट्ठाणे णियमा पज्जत्ता ॥ ८५ ॥ तिर्यंच जीव सम्यग्मिथ्यादृष्टि और संयतासंयत गुणस्थानमें नियमसे पर्याप्त ही होते
यहां यह शंका हो सकती है कि जिसने मिथ्यादृष्टि अवस्थामें तिर्यंचआयुको बांधकर पीछे सम्यग्दर्शनके साथ संयमासंयमको भी प्राप्त कर लिया है ऐसा जीव यदि मरकर तिर्यंचोंमें उत्पन्न होता है तो उसके तिर्यंच अपर्याप्त अवस्थामें संयतासंयत गुणस्थान रह सकता है। तब ऐसी अवस्थामें अपर्याप्त तिर्यंचोंके संयतासंयत गुणस्थानका सर्वथा निषेध क्यों किया गया है ? परन्तु ऐसी शंका करना योग्य नहीं हैं, कारण यह कि देवगतिको छोड़कर अन्य गति सम्बन्धी आयुके बांधनेवाले जीवके अणुव्रत ग्रहण करनेकी बुद्धि ही उत्पन्न नहीं होती। इसके अतिरिक्त तिर्यंचोंमें उत्पन्न होनेवाले क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंके भी अपर्याप्त अवस्थामें अणुव्रतोंकी सम्भावना नहीं है, क्योंकि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव यदि मरकर तिर्यंचोंमें उत्पन्न होते हैं तो वे भोगभूमिमें ही उत्पन्न होते हैं, और भोगभूमिमें उत्पन्न हुए जीवोंके व्रतग्रहण सम्भव नहीं है।
इस प्रकार तिर्यंचोंकी सामान्य प्ररूपणा करके अब उनके विशेष स्वरूपका निर्णय करनेके लिये उत्तरसूत्र कहते हैं
एवं पंचिंदियतिरिक्खा पंचिंदियतिरिक्ख-पज्जत्ता ॥ ८६ ॥
पंचेन्द्रिय तिर्यंच और पंचेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्तकोंकी प्ररूपणा सामान्य तियचोंके समान है ॥ ८६ ॥
अब स्त्रीवेदयुक्त तियंचोंमें विशेषताका कथन करनेके लिये उत्तरसूत्र कहते हैं
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